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स्वार्थ एवं राष्ट्रयीता

By Ramasray Prasad Baranwal


कुछ समय पूर्व एक समाचार पढ़ा था कि स्विट्जरलैंड में बैंक में जमा भारी धनराशि जो विदेशी नागरिकों ने जमा कर रखी है और किन्हीं कारणों से उसे निकाल नहीं पाए हैं और उनका कोई दावेदार भी नहीं है ,वह इतनी बड़ी मात्रा में है कि यदि वहाँ के नागरिकों में बाँट दी जाय तो लगभग प्रति व्यक्ति पंद्रह से बीस लाख भारतीय रुपये में वहाँ के नागरिकों के खाते में आ जाएंगे। वहाँ की सरकार ने एक जनमत संग्रह करवाया था कि क्या वह पैसा प्रत्येक नागरिक के खाते में डाल दिया जाय या देश के विकास में लगाया जाय , तो परिणाम आश्चर्य जनक था । अधिकांश लगभग 95 प्रतिशत नागरिकों ने यह मत दिया था कि पूरा पैसा देश के विकास कार्यों में लगा दिया जाय और व्यक्तिूगत रूप से खाते मे डालने की इच्छा नहीं के बराबर लोगों ने जताई थी । इसे कहते हैं निःस्वार्थ राष्ट्र प्रेम ,जो कि इन विकसित देशों के नागरिकों के आचार,विचार और व्यवहार में दिखाई पड़ता है।

मुझे याद है कि अपने देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने एक बार 2014 के चुनाव के पूर्व कहा था कि यदि भारतीय लोगों का कालाधान जो विदेशों में जमा है वह अगर हम उसे वापस ले आएंगें तो , वह धन इतना होगा कि प्रत्येक भारतीय को पंद्रह लाख तक देने के बराबर हो सकता है । इस बात को लेकर आज तक विपक्षी पार्टियां और हमारा मीडिया सवाल पूछता है कि मोीदी जी कब खाते में पंद्रह लाख डाल रहे हैं? यह होती है सोच का अंतर जो हमारी सोच और इन देशों के नागरिकों की सोच में अंतर दिखाता है और इसी को राष्ट्रप्रेम कहते हैं।

आज हम भारतवासी छोटी-छोटी बातों के लिए , अपने थोड़े से फायदे के लिए राष्ट्रहित की जिस तरह से अनदेखी कर रहे हैं , उससे निश्चित रूप से यहीं अर्थ निकलता है कि हममें राष्ट्रीयता नाम की कोई चीज ही नहीं बची है । जिस तरह अपने छोटे से लाभ के लिए हम राष्ट्रहित की अनदेखी कर रहे हैं ,वह अपने आप में शर्मनाक तो है ही ,साथ ही साथ लज्जाजनक भी है। बड़े-बड़े विकसित देशों की बात तो छोड़ दीजिए ,छोटे-छोटे देश जो हमसे बहुत बाद मे स्वतंत्र हुए वे देश भी विकास के दौड़ में हमसे बहुत आगे निकाल चुके हैं ।

वरना क्या कारण है कि चीन जो हमसे बाद में आजाद हुआ वह विकास के दौड़ में इतना आगे किस तरह निकल गया? जापान जैसा छोटा सा देश आज पूरी तरह आत्मनिर्भर क्यों है? किसी ने सोचा है कि हाँग कांग और दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देश विकास की दिशा मे इतना आगे कैसे बढ़ गए? सबसे बड़ी बात यही है कि इन देशों के लोगों मे है राष्ट्रीयता और देशभक्ति । ये एक ऐसी चीज है जो किसी भी देश को आगे बढने से नहीं रोक सकती । मुझे याद है कि एक बार जापान में कर्मचारियों ने अपने वेतन बृद्धि को लेकर मांग रखी । वहाँ की सरकार ने उनकी मांग मानने से इनकार कर दिया । अपना देश होता तो कर्मचारी पता नहीं क्या -क्या करने पर उतारू हो जाते । परंतु वहाँ के कर्मचारियों ने सिर्फ यह किया कि उन्होंने भोजनावकाश में भोजन करना बंद कर दिया और अपनी बांह पर काली पट्टी बांध कर इतना अधिक काम करना शुरू कर दिया कि उत्पादन ही बहुत बढ़ गया । अंत में सरकार को मजबूर होकर उनकी मांगे माननी ही पड़ी । इसे कहते हैं राष्ट्रीयता और देश भक्ति।


आजादी के बाद पिछले लगभग तिहत्तर वर्षों मे देश मे विकास भी हुआ है, और काम भी ,परंतु एक ही चीज का देश में ह्रास हुआ है वह है राष्ट्रीयता में कमी होना । यह एक चीज देश में पता नहीं कैसे विकसित हो गई कि राष्ट्रधर्म का स्थान व्यक्तिबाद ने ले लिया । पता नहीं कैसे यह यह संस्कार हमारी रगों में घुसता गया, जोकि पीछा ही नहीं छोड़ रहा है।न जाने कैसे हम छोटी-छोटी बातों के लिए व्यक्तिगत स्वार्थ और आडंबर से ग्रस्त होते गए?

पता नहीं विश्व गुरु कहलाने वाले देश के लोगों को क्या होता गया और क्यों होता गया , समझ मे नहीं आता ? पतन की पराकाष्ठा को भी हम भारतीय पार करते गए । यह भी नहीं सोचा कि जो आजादी हमने इतनी मशक्कत के बाद पाई है उसका क्या होगा ? हमारे अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी को कितना नुकसान पहुंचता है हम यह भी भूल गए। हम भारतीयों को सिर्फ और सिर्फ इस बात से मतलब रह गया है कि हमारा नुकसान न होने पाए, चाहे इसमे राष्ट्र को कितना भी नुकसान पहुच जाए हमें कोई फर्क नहीं पड़ता । एक कहावत है जैसा राजा वैसी प्रजा। अगर हम गहराई से देखें और सोचें तो समझ में आता है कि देश से आजादी के बाद कई राजनीतिक भूलें हुईं,जिनका खामियाजा आज तक हम भारतवासी उठा रहे हैं। आजादी के बाद लोगों की मनोदशा बहुत तेजी से बदली ,जिसका परिणाम यह हुआ कि देश जातिबाद, धर्मबाद, भाई भतीजाबाद, परिवारबाद के दल-दल में फँसता गया ,उलझता गया। अपनी-अपनी राजनीतिक महातवाकांक्षा के लिए हमारे नेतृत्वकर्ताओं ने देश के भोले-भाले निरीह जनो को न सिर्फ बेवकूफ बनाया बल्कि उनके मन से राष्ट्र भक्ति के स्थान पर मक्कारी , स्वार्थ और व्यक्तिवाद की भावना इस तरह से भर दी कि उससे पीछा छूटना मुश्किल दिखाई पड़ता है।

ऐसा नहीं है कि सब कुछ समाप्त हो गया है, और आगे के रास्ते बंद हो चुके हैं , बस आवश्यकता इस बात की है कि एक बार हम सभी भारतवासी मन में यह ठान लें कि चाहे जो हो जाय परंतु हम किसी गलत तरीके से कोई भी ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे अपने साथ-साथ किसी अन्य व्यक्ति या राष्ट्र को कोई क्षति पहुंचे । सिर्फ हम यहीं क्यों सोचें कि हमें सरकार और देश ने क्या दिया ,हम यह क्यों न सोचें कि हमने राष्ट्र के विकास में क्या योगदान दिया? हमें अपना सोचने का दृष्टिकोण बदलना होगा और इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है कि जागरूकता की और शिक्षा की जिसके बिना मनुष्य न तो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो सकता है न ही वह अपने कर्तव्यों को पहचान सकता है । हर भारतवासी सिर्फ और सिर्फ यह ठान ले कि वह हर स्थिति में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेगा , तो कोई कारण नहीं कि हम वह कुछ कर सकेंगे जिसका सपना हमारे सतंत्रता सेनानियों ने और देशभक्तों ने देखा था।




कभी - कभी तो लगता है कि यह सब क्या इतना आसान होगा ? क्या इतने बड़े जनमानस मे इतना बड़ा बदलाव क्या संभव है ? इसके लिए बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है ,इसका उत्तर खुद के पास है। क्या किसी ने सोचा था कि देश कभी स्वतंत्र हो पाएगा ? परंतु देश भी स्वतंत्र हुआ और आगे भी बढ़ा , परंतु एक गलती होती गई कि हम जाति के नाम पर , धर्म के नाम पर, भाई भतीजेबयाद के नाम पर, हमें और देश को बाँटनेवालों को सत्ता सौंपते गए, बेवकूफ बनते गए और इन सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों ने हमारा शोषण ही किया आज ऐसी विषम स्थिति क्यों उत्पन्न हुई कि रक्षक ही भक्षक बन गए ? इसके लिए जिम्मेदार हम खुद हैं । क्यों हमने ऐसे लोगों को सत्ता सौंपी जो सिर्फ और सिर्फ अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते रहे, इन्होंने यह क्यों नहीं सोचा कि उनकी देशवासियों के प्रति भी कोई जबावदेही है, निष्ठा है ?

हर बार मौका आता है और हर बार हमसे वही भूल होती है ,हम गलत हाथों में सत्ता सौंपते हैं , आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा? कब तक हम इन सत्ता लोभियों का शिकार बनते रहेंगे? हमें गंभीरता से सोचना होगा न सिर्फ खुद के बारे मे, अपितु, समाज के बारे में, और राष्ट्र के बारे में भी । व्यक्तिावाद से ऊपर उठकर समाजावाद और राष्ट्रावाद का भाव जगाना होगा । हमें समझना होगा कि देशहित का रक्षक कौन है और कौन हमें बेवकूफ बना रहा है? कहना नहीं चाहिए की हमारे देश का बुद्धिजीवी खुद भ्रमित है , वह सिर्फ अपना भला सोच रहा है, अपने लाभ की बात सोच रहा है। ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों से भी सावधान रहने की जरूरत है जो कि सिर्फ अपने मतलब के बुद्धिजीवी हैं ।

खुद हर भारतवासी को अपना कर्तव्य समझकर आगे बढ़ना होगा । आज हमें गांधी ,सुबास, पटेल, भगतसिंह,राजेन्द्र बाबू और शास्त्री जैसे देशभक्तों की जरूरत है, स्वार्थी लोगों से हमें खुद दूरी बनानी होगी । तभी हम देश के विकास की बात सोच पाएंगे । हमे यह समझना होगा कि देश के विकास मे ही अपना विकास निहित है । आज दिखावे के लिए लोग देश और समाज के विकास की बात करते जरूर हैं लेकिन उनका असल मकसद कुछ और ही होता है , और ऐसे लोगों को हमें पहचानना ही होगा ।


वैसे बहुत चिंतित होने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि हमारी नई पीढ़ी ने एक आशा की किरण जगाई है जो कि बहुत ही सकरात्मक संदेश है देश प्रेम का । और ऐसा सिर्फ इसलिए हैकि हमारी यह पीढ़ी शिक्षित है , जागरूक है अपने अधिकारों के साथ- साथ कर्तव्यों के प्रति भी। यह फर्क इसलिए है कि शिक्षित होना सबसे बड़ी आवश्यकता है ,जिसके बिना मनुष्य सही और गलत का अंतर नहीं कर सकता । अतः हर स्थिति में हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को सम्पूर्ण शिक्षित बनाना होगा । सम्पूर्ण शिक्षित का तात्पर्य यह है कि , शिक्षा ऐसी हो जो मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करे, उसे राष्ट्रवादी विचारधारा से जोड़े,समाज के विकास के लिए प्रेरित करे ,केवल उसे व्यक्तिवादी ही न बनाए । यह सही है कि व्यक्ति का विकास होगा ,तभी समाज और देश का विकास होगा। लेकिन याद रखने वाली बात तो यह है कि अपने विकास में किसी और को तो नुकासान पहुँच रहा है। बसुधैव कुटुम्बकम का भाव हमे नहीं छोड़ना है , क्योंकि यही हमारी विरासत है, जिसे हम छोड़ नहीं सकते ।


यह सही है कि विकास की दौड़ मे हम बहुत पिछड़ गए हैं लेकिन हमें इन विकसित कहे जाने वाले देशों वाला विकास भी नहीं चाहिए ,जो विकास के नाम पर अपनी संस्कृति और सभ्यता को ही भूल जाए । हमें विकास तो करना है लेकिन अपनी सभ्यता और संस्कृति की कीमत पर नहीं । एक बार फिर से समूची दुनियाँ को मानवता का पाठ तो हमे ही पढ़ाना है । विश्व गुरु तो हमें ही बनना है ,जब भी दुनियाँ में किसी तरह की विपत्ति आती है तो पूरा विश्व आशाभरी नजरों से हमारी ओर देखता है । आज अवसरआ गया है कि एक बार फिर हम प्राचीन परंपरा का निर्वाह करते हुए, अपने प्राचीन गौरव को याद करते हुए समूची दुनियाँ का मागदर्शन करें, और अपने अस्तित्व की भी रक्षा करें। भारत को एक बार फिर सोने की चिड़िया बनाने के लिए दृढ़संकल्प लेकर अगर हर भारतवासी इस महान कार्य में पूरी संकल्प शक्ति से लगेगा और अपना योगदान देगा ,तो कोई कारण नहीं की हमारा प्रयास सफल नहीं होगा और हमारा देश पुनः उन्नति के शिखर पर होगा , इसमे कोई संदेह नहीं। सिर्फ और सिर्फ जरूरत इस बात की है कि निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर हर भारतवासी राष्ट्रवाद की विचारधारा से जुड़कर देशहित की सोचे और तनमन से राष्ट्र के प्रति समर्पित हो । और तभी हम अपनी आने वाली पीढियों को एक सुनहरा भविष्य विरासत में दे पाएंगे ।

By Ramasray Prasad Baranwal









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