सिगरेट की एक डिबिया..
- Hashtag Kalakar
- Oct 15
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By Vishvas Desai
आज घर में अकेला था, सिगरेट की एक डिबिया थी,
और कुछ साहिर की नग़में थीं,,
वक्त भी अकेला था, आवाज़ में थोड़ी सिसकियाँ थी,
न निभाई जाने वाली कसमें थीं,,
जिन हाथों में किसी के हाथ थे, उन हाथों में सिगरेट थी,
धुएं में कुछ यादें थी,,
उन यादों के धुएं में फिर से एक कहानी जागी थी,
कुछ महीनों से सोई हुई अश्रु की धारा जागी थी,,
साहिर की नग़मों में जैसे होते हैं सपने धरातल,
बाहर एक शांति का स्वर था, अंदर उतना ही कोलाहल,,
भाव-अभाव का मेला था, सुकून की कुछ नदियाँ थी,
और "कभी-कभी" की बातें थी,,
आज घर में अकेला था, सिगरेट की एक डिबिया थी,
और कुछ साहिर की नग़में थीं..।
By Vishvas Desai

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