सफरनामा
- Hashtag Kalakar
- Oct 27
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By Dr Noopur Gohel
जिंदगी की राहों में
भटके हुए से कदम
ख्वाबों की चादर लिए
निकल पड़े है हम
सूरज की तपिश
दे दरस सब्र का
चांदनी की ठंडक
बने मरहम जिगर का
लेकिन अंधों की दौड़ में
गिरने का कैसा ख़ौफ
मंजिल तक पहुंचना ही है
तो चल कर ही सही
फिर क्या जीत क्या हार,
कौन आगे, कौन पीछे
हर एक दौड़ अलग
हर एक तरीका अलग
हर कहानी अलग
हर किरदार अलग
लिए एक ही मकाम
खुद की जीत, खुद की पहचान
जीत वो नहीं जो दुनिया दिखाए
मगर वो जो दिल को सुकून पाए
By Dr Noopur Gohel

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