सच और झूठ
- Hashtag Kalakar
- Nov 8
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By Dr. Hari Mohan Saxena
सच और झूठ की विकट लड़ाई
आदि काल से चलती आई,
जीत अंत में सच की होती
मगर झूठ को समझ न आई।
झूठ शुरू में मोहक लगता
करके खूब रंगाई पुताई,
कच्चे रंग कहाँ टिकते हैं
हों बदरँग जब होए धुलाई।
मीठी मीठी बातें करके
झूठ फरेब अनेकों करते,
कुछ दिन झूठ भले चल जाए
भेद खुले तब वह फँस जाए।
क्षणिक लोभ और लाभ की खातिर
अपराधी बन जाते शातिर,
अपनी इज़्ज़त दाँव लगाते
देर सबेर वो पकड़े जाते।
सत्य शुरू में कड़वा लगता
किन्तु अहित नहीं वह करता,
सत्य मनुज को निर्भय करता
कठिन परीक्षा से नहीं डरता।
सीख सदा से चलती आई
सच का दामन थामो भाई
झूठ का रास्ता छोड़ समय पर
सुखी रहो तुम सत्य बोलकर।
By Dr. Hari Mohan Saxena

यह रचना सच और झूठ की अनंत संघर्ष यात्रा को बेहद सरल, स्पष्ट और प्रभावी शब्दों में सामने लाती है। कविता बताती है कि झूठ चाहे कितना भी सज-धजकर आए, अंततः सत्य की धुलाई में फीका पड़ ही जाता है। सत्य की कठोरता और झूठ की क्षणिक मिठास—दोनों का जो सुंदर चित्रण किया गया है, वह जीवन का सार समझा देता है। सच को थामे रहने की प्रेरणा देने वाली यह कविता मन को छू जाती है। very nice
Reality
Very good poetry
Nice poem
Excellent poem on the timeless conflict between truth and untruth