विचारधारा की अंधभक्ति
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विचारधारा की अंधभक्ति

By Hemant Katyan



तात्कालिक समय में हम उस दौर में है जहाँ आप बात दिल्ली की करो तो तथाकथित पढ़े लिखे लोग उसे टहलाते-टहलाते इस्लामाबाद तक ले जाते है। किसी लड़की को न टहला पाने की सारी फ़्रस्ट्रेशन यही निकलती हो जैसे। बड़ा कनफुजिया देने वाला माहौल है समझ नहीं आता के हम तक खबर पहुँचाने वाला मदर डेरी के दूध का धुला है या फिर डेटोल का। अगर आपके हिसाब से आपके वाले की बात में दम है तो उनके हिसाब से उनके वाले की बात में भी तो दम है न। तो बताइए साहब आप ऐसे में क्या कर सकते है?? हाँ गालियां देना सबसे आसान काम है वैसे। लेकिन अगर आप गालियां देते हुए राष्ट्रवाद सिखाने और समझाने लगोगे तो इसका मतलब ये होगा जनाब के उनका वाला सही है और आपका वाला गलत। अंतिम फैसला दे देने का अधिकार हम में से किसी के भी पास नहीं है। ये काम अदालत का है कानून का है। दरअसल, हम बस अपना कहना चाहते है मगर उनका सुनना नहीं चाहते। ये असहनशीलता ही हर चीज़ का असली कारण है।





किसी को भी कुछ भी कह देने की जो नयी बीमारी हमे लगी है उसे वक़्त रहते ठीक कर लिया जाये तो बेहतर है वैसे आपके वाले और उनके वाले में एक समानता ये है की ये बीमारी दोनों को लगी है। मुबारक हो। बाकि आप अगर इस बीमारी को ठीक नहीं भी करना चाहते तो आपकी मर्ज़ी लोकतंत्र में आपको कोई कुछ नहीं कहेगा फिर चाहे ये उसके नियमों के थोड़ा खिलाफ ही क्यों न हो। लेकिन एक बात का भरोसा रखिये आपकी इस बीमारी से नुकसान आपको ही है क्योंकि भारत जैसे विशाल और महान देश में आप जैसो का आना जाना लगा रहा है और वो यहाँ का कुछ नहीं उखाड़ पाए। वैसे आप हर रोज़ एक बार ईश्वर का शुक्रियादा कर ही दिया कीजिये की भारत जैसे लोकतंत्र में आप पैदा हुए, हाँ लेकिन अगर आप ईश्वर को भी नहीं मानते है तो माँ बाप को ही कर दिया कीजिये। बाकि आपकी बीमारी ठीक हो न हो लेकिन इस समाज का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी क्योंकि असली लोग यहाँ अभी भी जिन्दा है वो लोग जो डिब्बा देख के देसी घी पहचान लेते है। आप पर्सनल होने से पहले कभी अपनी पर्सनालिटी का निरिक्षण नहीं करते है अगर करते तो ऐसा करने से पहले एक बार सोच लेते। वैसे इसमें आपकी भी कोई गलती नहीं क्योंकि ये काम बुद्धिमानो का है। आपके लिए बेहतर यही है के अपनी बीमारी का ख्याल रखिये और जल्द से जल्द इसका इलाज करवाइये बाकि इस देश का लोकतंत्र तो ज़िंदाबाद था ज़िंदाबाद है और ज़िंदाबाद रहेगा ही।



By Hemant Katyan





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