वह ज़मीन
- Hashtag Kalakar
- May 11, 2023
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By Ayushmaan Vashishth
रेत हवा से उड़ गई, आज वह ज़मीन भी बिक गई,
मैं और शहबाज़ खेलते थे जहाँ रोज़, वह खिलखिलाती चीखें आज सिमट गईं।
सामने मकान था मेरा, जीवन में कोई अंजाम ना था तब थेरा,
रोज़ सुबह नई सी होती थी, दोपहर में एक गेंद रोज़ खोती थी,
सामने जाते लोग देख के मुस्कुराते थे, हम भी पांव छू कर यूं चेचाहते थे।
जब सबसे बड़ा सवाल ज़िंदगी का यह होता था, शाम की चॉकलेट का जुगाड़ कैसे होगा,
इन खोए हुए कुछ पल का आज दीदार कैसे होगा?
आज जेब में पैसे लिए तो चलता हूँ, दुकान-छिचा की जो थी उससे बड़ी में फिरता हूँ,
सामने सौ तरह की चॉकलेट तो दिखती है, पर आज वैसा मन क्यों नहीं ढूंढ पाता हूँ?
आज वह रेत हवा से उड़ गयी, आज वह ज़मीन भी बिक गयी,
जहाँ रोज सुबह स्कूल जाने से पहले रोता था, बस इतना समझना चाहता था बारिश हो जाए और छुट्टी मिल जाए,
अब मैं नहीं हूँ वहाँ अब तो वह पेड़ भी बारिश में टूट गया, वह शायद इंतज़ार करता थक गया,
आजवहतहसीलकेसामनेकीसड़कभीपक्कीबनगयी, आजवहज़मीनभीबिकगयी...
By Ayushmaan Vashishth

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