रमेश बेटा...
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Himadri Das
जिन सच्चाइयों से हम अक्सर भागते रहते हैं, वही सच्चाइयों का सामना हमें मरते वक्त करना पड़ता है। जीवन इसका हिसाब बराबर रखता है। चलो, एक किस्सा सुनते हैं।
###Scene 1###
केदारनाथ जोशी: (कराहते हुए) रमेश... रमेश बेटा! जल्दी आओ!
रमेश पाटिल: (हाँफते हुए) क्या हुआ चाचा जी?
केदारनाथ जोशी: (पीड़ित स्वर में) रमेश .... बंद करो यह तमाशा। और ... कब तक इस बूढ़े...(थोड़ा उठकर) को तारों से जीवित रखोगे?
रमेश पाटिल: (शांत स्वर में) जी..... आप चिंता मत कीजिए। आपको आराम और दवाइयों की सख्त आवश्यकता है। डॉक्टर बाबू आते ही आपको.......
केदारनाथ जोशी: (आवेश में) कोई नहीं आने वाला। न मेरा बेटा और न ही तेरा वह फ़र्ज़ी डॉक्टर।
रमेश पाटिल: (शांत स्वर में) आपको इतना तनाव लेने की क्या ज़रूरत है? आपका बेटा आपके सारे खर्चे उठाता है। आपको देश के बेहतरीन अस्पताल में रखा है। आपका कैंसर बढ़ता जा रहा है और इतना उत्तेजित होकर आप खुद यम की स्तुति कर रहे हैं।
केदारनाथ जोशी: (पानी का गिलास मुँह तक लाकर, पानी पीकर टेबल पर रखते हुए) रेवां दे, रेवां दे, रमेश डिकरा! तुझे पता है, उस बच्चे ने पत्र, ईमेल, फोन, मैसेज कुछ भी नहीं किया? एक पूरा साल हो गया! मन तो करता है, मैं अभी मर जाऊँ। एक पिता को अपने बेटे से बढ़कर और कुछ नहीं होता। उसके विदेश भेजने का ऋण मैं ही दे रहा हूँ!!
रमेश पाटिल: तो आपने कभी उसे कॉल करने की कोशिश की है?
केदारनाथ जोशी: मुझे ये सब चलाना नहीं आता l
बाहर से एक नर्स केदारनाथ के लिए खाना लेकर आती है और बिस्तर के ऊपर रखे टेबल पर रख देती है।
रमेश पाटिल: चलिए चाचा जी, खाना खा लीजिए l
रमेश की मदद से केदारनाथ खाना खा लेता है और अब बिस्तर पर लेट जाता है। रमेश केदारनाथ का मुँह पानी से धोता है और अब पैर दबाने लगता है।
केदारनाथ जोशी: (शांत लेकिन गंभीर स्वर में) मेरा बेटा जगदीश जब पन्द्रह साल का था, तब उसने मन बना लिया था कि उसे अमेरिका जाकर पढ़ाई करनी है। उसके दोस्तों का इसमें सबसे बड़ा हाथ था। मैंने कितना समझाया, लेकिन वह और चालाक निकला। बारहवीं देने के बाद जब उसका परिणाम आया, तब उसने झूठ बोला कि उसके 89% आए। फिर स्कूल के प्रधानाध्यापक से पता चला कि उसे तो सिर्फ़ 68% आए थे! और यही नहीं, उस हरमज़ादे ने रात के सन्नाटे में मेरे ही तिजोरी से बीस लाख रुपये लेकर गायब चंपत हो गया।
रमेश पाटिल:(उत्सुकता से) फिर?
केदारनाथ जोशी: फिर क्या? तेरह साल बाद उसका खत आया। पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि उसे वहाँ नौकरी मिल गई है और वह हर महीने कुछ पैसे भेजता रहेगा।
रमेश पाटिल: तो फिर दिक्कत कहाँ.......
केदारनाथ जोशी: (टोक कर) तेरह साल बहुत है रमेश! तेरा साल उसने मुझे अंधेरे में छोड़ा। मैं उस वक्त मेरी पत्नी के इलाज के पैसे भीख माँगता रहा। वह बेचारी बेटे के प्यार में इतना रोई कि उस रुदन को देख ऐसा लगा मानो… मानो…
रमेश पाटिल: मानो?
केदारनाथ जोशी: कुछ नहीं। शायद मैं बहुत कुछ बोल दिया।
रमेश पाटिल: (शांत स्वर में) आप मुझे कुछ भी बता सकते हैं। मैं आपका बेटा नहीं, परंतु बेटा समान तो हूँ।
केदारनाथ जोशी:(घेहरी साँस लेकर गंभीर स्वर में) तो सुनो, जगदीश का एक बड़ा भाई भी था। प्रणव नाम हमने रखा था । उसके ठीक.....
रमेश पाटिल: (अशिष्ट तरीके से टोक कर) हमने?
केदारनाथ जोशी:(क्रोध में) अरे डोबो, 'हमने' मतलब मैं और मेरी पत्नी लता जोशी ने!!!
रमेश पाटिल: (भयभीत स्वर में) सॉरी चाचा जी। आप जारी रखिए।
केदारनाथ जोशी: (गंभीर स्वर में) उसके ठीक एक साल बाद जगदीश का जन्म हुआ। प्रणव को कई दोष थे। उसके दवाइयों और साप्ताहिक चिकित्सा में कई पैसे खर्च हो गए। मुझे मेरा खेत, पुश्तैनी जमीन, सब बेचनी पड़ी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। तब मुझे लगा कि क्यों न हम प्रणव को दत्तक गोद लेने के लिए दे दें ।तो लता का रुदन देखकर मुझे ऐसा लगा मानो प्रणव के बदले मुझे जगदीश को छोड़ देना चाहिए था।
तभी बाहर से रमेश का साथी उसे तुरंत बुलाता है।
रमेश पाटिल: एक मिनट, चाचा जी।
केदारनाथ जोशी: हम्म।
रमेश अपना फोन केदारनाथ के कमरे में भूल गया था, जो सहसा बजाने लगा। केदारनाथ ने फोन उठाया तो उसकी नज़र फोन के वॉलपेपर पर पड़ी। केदारनाथ स्तंभित रह गया । उसने तुरंत फोन टेबल पर रख दिया और पानी का पूरा गिलास पी लिया, मानो उसने कुछ अलौकिक देखा हो।
रमेश कमरे में आता है।
रमेश पाटिल: माफ़ कीजिए, चाचा जी, वह कुछ ज़रूरी था।
केदारनाथ जोशी: (डरे हुए हालात में) बेटा...वह फ़ोन के वॉलपेपर में कौन है।
रमेश पाटिल: जी वो में और मेरी माँ हैं l
केदारनाथ के हाथ-पैर ठंडे हो गए। वह जोर-जोर से खांसने लगा। रमेश ने उसे बिस्तर पर सुलाया और दवा देकर कमरा बंद करके अपने घर चला गया।
###Scene 2###
रमेश अपने घर पहुँच जाता है। घर में सन्नाटा रहता है। ऐसा लगता है मानो कोई घर में ही न हो।
रमेश पाटिल: माँ, मैं आ गया।
विजया दत्त: (गिले स्वर में) आ गए आप।
रमेश पाटिल: (चिंतित होकर) भाभी? आप रो रही हैं? माताजी कहाँ हैं?
विजया जोर-जोर से विलाप करते हुए अपने फ़्लैट में चली जाती है। रमेश का पड़ोसी आता है।
इंद्रसेन दत्त: (हताश भरे स्वर में) रमेश.....
रमेश पाटिल: (चिंतित होकर) भाभी क्यों रो रही है? क्या हुआ? माँ कहाँ है?
इंद्रसेन दत्त:(अपने हाथ रमेश के कंधों पर रखते हुए) वे इस दुनिया के कष्टों से मुक्त हो चुकी हैं।
रमेश पाटील:(चित्कार करते हुए) नहीं.... इंद्रसेन.... नहीं!!!!
रमेश बेहोश हो जाता है।
###Scene 3###
कुछ घंटों बाद वह उठता है।
इंद्रसेन दत्त:(रमेश के गाल पर मारते हुए) रमेश... रमेश... तुम उठ गए?
रमेश पाटील: माँ कहाँ है?
इंद्रसेन दत्त: रमेश… हम माँ जी को बचा नहीं पाए। विजया उनके साथ खाना खा रही थी, तभी वे बेहोश हो गईं। अस्पताल पहुँचते-पहुँचते काफी देर हो गई। उनका शरीर अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ा है। तुम पंडित जी से बात करके जल्द से जल्द सारी रस्में करवा लो।
रमेश पाटिल: (आवेश में) तो आपने मुझे कॉल क्यों नहीं किया! और किस अस्पताल में माँ पड़ी है?
इंद्रसेन दत्त: (तिल मिलाकर) मैंने आपको कॉल किया। आपने कहाँ उठाया?
रमेश अपना फोन चेक करता है और मिस्ड कॉल देखकर सिसकने लगता है।
इंद्रसेन दत्त: (अत्यंत कोमल स्वर में) रमेश… अभी रोने से कुछ नहीं होगा। तुम्हें पता है, माँ जी को उन यंत्रों और दवाइयों से कितनी पीड़ा मिलती थी? अरे… वो बेचारी तो सो भी नहीं सकती थी। अभी माँ जी स्वर्ग से हम सबको देख रही हैं। तुम्हें जाकर वकील के साथ एक बार विरासत के बारे में बात कर लेनी चाहिए।
रमेश को विरासत सुनने पर इंद्रसेन पर शक होता है। रमेश को लगता है कि विजया और इंद्रसेन ने विरासत के लिए माँ की हत्या कर दी। लेकिन इसका सबूत कहाँ है?
रमेश पाटिल: (आँसू पोछते हुए गंभीर स्वर में) आप अभी जाइए। मुझे थोड़ा समय दीजिए।
इंद्रसेन दुखी भाव से चला गया। लेकिन रमेश को आँखों के कोने से दिख गया कि छिप-छिप कर विजया भी उनके संवाद को सुन रही थी।
###Scene 4###
अगली सुबह रमेश जल्दी उठता है और अपने वकील मोहम्मद हुसैन के दफ्तर में पहुँच जाता है।
रमेश पाटिल: क्या में अंदर आ सकता हूं हुसैन साहब?
मोहम्मद हुसैन: (गंभीर स्वर में) आओ पाटिल साहब।
(रमेश कुर्सी पर बैठ जाता है)
कल जब आपने बताया कि आपकी अम्मी का इंतकाल हो गया, तब मैं मस्जिद से तुरंत दफ्तर आ गया। अल्लाह करे आपकी अम्मी जन्नत में हों।
रमेश पाटिल: (कोमल स्वर में) हुसैन साहब, आप बस अपनी दुआओं में मेरी माँ और मुझे रखना। मेरे आस-पास कई साँप घूम रहे हैं।
हुसैन साहब काफी आश्चर्य में पड़ गए ।
रमेश पाटिल: (कोमल स्वर में) तो चलिए आप कागजात निकालिए l
हुसैन साहब: (दराज से मोटी फाइल निकालकर एक पृष्ठ हाथ में ) आपकी अम्मी जान ने यह काफी संभाल कर रखने के लिए कहा था। यह आपके दत्तक ग्रहण प्रमाण सर्टिफिकेट है।
रमेश के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। अपनाया हुआ? और वह भी रमेश? कब? माता जी ने तो कभी बताया ही नहीं। रमेश तुरंत वह पत्र पढ़ता है और उसकी आँखें फटी की फटी रह जाती हैं ।
रमेश पाटिल: (अपने आप से) केदारनाथ चाचा मेरे असली पिता? लेकिन यह कैसे हुआ?
हुसैन साहब: कुछ कहना चाहते हैं आप?
रमेश कुर्सी से उठकर अस्पताल भागता है। उसने अपने जीवन में कभी इतना तेज़, और वह भी चप्पलों में, नहीं भागा।
###Scene 5###
रमेश अस्पताल पहुँचता है और केदारनाथ के कमरे में जबरदस्ती घुस जाता है। लेकिन बिस्तर तो खाली है।
रमेश पाटिल:(एक नर्स से ) केदारनाथ चाचा कहाँ है!!
नर्स: उनके बेटे ने उन्हें रात तीन-चार बजे ही डिस्चार्ज कर दिया। और हाँ, उन्होंने यह पत्र तेरे लिए छोड़ा है।
रमेश लिफाफा फहाड़ कर पत्र पढ़ता है l
रमेश डिक्रा, कल तुम्हारा फ़ोन बज रहा था। मैं जब तेरे फ़ोन का वॉलपेपर देखा, तब मुझे पता चला कि रमेश, तुम असल में मेरे प्रणव हो। मैं इस सच्चाई को बता नहीं पाऊँगा। इसीलिए मैं विदेश जा रहा हूँ। तुम्हारा भाई जगदीश, यानी मेरा बेटा, मुझे लेकर जा रहा है। अपना ध्यान रखना।
रमेश बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। कुछ क्षण बाद विजया और इंद्रसेन उसके हाथ से पत्र लेकर कूड़े में फेंक देते हैं और जोर-जोर से हँसते हुए चले जाते हैं।
By Himadri Das

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