मैं सुरक्षित पाता हूँ ख़ुद को..
- Hashtag Kalakar
- Oct 15
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By Vishvas Desai
मैं सुरक्षित पाता हूँ ख़ुद को,
एक दुनिया हो,
जहाँ लिबास के नाम पर सिर्फ़ कपड़े हो,
जो ढकते हो केवल तन,,
एक आईना हो मौन के उस पार,
जो पहचाने केवल मन,,
जहाँ शब्दों के बाहर आने का सीधा रास्ता हो,
और अभिव्यक्ति के लिए खुला आसमां,,
मैं सुरक्षित पाता हूँ ख़ुद को,
एक दुनिया हो,
जहाँ किसी का यथावत स्वीकार सामान्य हो,
कटघरों की जगह कंधों ने ली हो,
और यथार्थ कल्पना से बहुत दूर न हो,,
जहाँ दिखावे के नाम पर कुछ न हो,
हो, तो किसी का होना भर हो,,
रिश्तों के कोई नाम न हो,
हो, तो सिर्फ निभाना हो,,
युग मोहताज न हो किसी परिभाषा का जहाँ,
और न ही वक्त पर अंकित हो अच्छे-बूरे के हस्ताक्षर,,
और यह दुनिया या तो मेरे विचार विश्व का आँगन है,
या फिर मेरे तकिये के नीचे रक्खे गए कुछ कोरे काग़ज़ पर किये गए स्याही के धब्बे,
जो मेरे और जगत के संबंध को जान सके उतने बड़े नहीं हुए हैं..।
By Vishvas Desai

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