मैं भी बना एक दिन राजा
- Hashtag Kalakar
- Oct 27
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By Dr. Hari Mohan Saxena
इक दिन मुझको सपना आया
देश ने राजा मुझे बनाया,
सिर पर मेरे मुकुट सजाया
सिँहासन पर मुझे बिठाया।
मैंने भी संघोल उठाया
करा दण्डवत, शीश नवाया,
रज को भी माथे से लगाया
जनहित का बीड़ा भी उठाया।
नहीं देश से हो गददारी
देशभक्त बनें नर नारी,
जैसे यह फरमान सुनाया
गद्दारों को चक्कर आया।
झूठ फ़रेब और बेईमानी
नहीं चलेगी अब मनमानी,
अत्याचारी नहीं बचेगा
न्याय सुरक्षा देना होगा।
प्रेम देश से नहीं करेगा
वह इस देश में नहीं रहेगा,
देश में रहकर हमें डसेगा
देश उसे अब नहीं सहेगा।
जो थाली में छेद करेगा
भोजन उसको नहीं मिलेगा,
नमक यहाँ खा करे हरामी
उसका बंद हो हुक्का पानी।
न्यायपाल कैसी मनमानी
शपथ न्याय की क्यों न मानी ?
चाँदी के टुकड़ों की खातिर
सत्य रौंदकर झूठ की मानी।
ऐसा यहाँ नहीं अब होगा
न्याय तुम्हें अब करना होगा
स्वार्थ की पट्टी खोल आँख से
साथ सत्य का देना होगा।
मेधावी का हो सम्मान
शोभित पद पर प्रतिभावान
नहीं रहें नाक़ाबिल अफसर
योग्य जनों को देंगे अवसर।
नीयत में जिसकी खोट रहेगा
नहीं समर्थन उसे मिलेगा,
भ्रष्टाचारी और लफँगे
सबके मोटा सोट पड़ेगा।
लूट के जनधन जो धनवान
लम्पट हों या बेईमान,
खुद को साबित करें महान
होगी उनकी बंद दुकान।
सुनो नागरिकों देकर ध्यान
हमें बनाना देश महान,
जो नुक्सान करे भारत का
उसका यहाँ नहीं स्थान।
By Dr. Hari Mohan Saxena

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