मिठाई
- Hashtag Kalakar
- Nov 8
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By Dr. Hari Mohan Saxena
खुली पड़ौस में नई दुकान
जिसमें सजे सभी मिष्ठान्न,
हलवाई से कर ली यारी
चखी मिठाई मैंने सारी।
बूँदी के लड्डू बनवाकर
रखा थाल में उन्हें सजाकर,
मैंने जब वह लड्डू खाया
खाकर तृप्त स्वयँ को पाया।
गरमा गरम जलेबी आई
बड़े शौक से हमने खाई,
मीठे रस में डूबी आई
हमने देख लार टपकाई।
बर्फी रँग बिरँगी देखी
सभी स्वाद में बड़ी अनोखी,
मावे में मेवा था डाला
स्वाद बन गया बड़ा निराला।
रसगुल्ला भी जमकर खाया
गोल मटोल, मधुर रस भाया,
छेने से था उसे बनाया
मधुर चाशनी में तैराया।
रसमलाई भी मैंने खाई
स्वाद चखा दुनिया बिसराई,
छेना, केसर, दूध, मलाई
रूप स्वाद में अद्भुत पाई।
गए खरीदने केसर घेवर
खुश हो लौटे भाभी, देवर,
घेवर घी में तले कढ़ाई
उन्हें उतार रबड़ी लगवाई।
गुलाब जामुन बड़े रसीले
जो खाए वो स्वाद न भूले,
गरमा गरम गुलाबी चेहरा
खुशबू में भी सबसे आले।
राजभोग, चमचम क्या कहने
ले चटखारे खाए मैंने,
रसकदम्ब, सन्देश,माधुरी
दावत इनके बिना अधूरी।
बालूशाही और इमरती
जिस बिन थाली कोई न सजती,
गुझिया, मालपुआ जब आते
उनको देख सभी ललचाते।
कलाकंद और रबड़ी खाकर
मस्त हुआ मन तृप्ति पाकर,
जग नीरस, निस्सार सा होता
यदि यहाँ हलवाई न होता।
By Dr. Hari Mohan Saxena

Very Good poem
Excellent poem
Lovely
कविता पढ़ते पढ़ते मुँह में पानी आ गया
Beautiful poem reminded of childhood