माया और मोक्ष
- Hashtag Kalakar
- Nov 8
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By Dr. Hari Mohan Saxena
क्या है माया, मोक्ष का चक्कर ?
भटक रहे सब जन्म जन्मांतर,
गुरु से पूछा शिष्य ने आकर
गुरु ने खोला भेद, बताकर।
बुद्धि माया के वश जब आती
जीवन में अँधियारा लाती,
पाप पुण्य की समझ न आती
सच परदे में रख बहकाती।
माया के हैं रूप अनेकों
ज्ञान चक्षु से देखो, परखो,
माया अहँकार पनपाती
स्वजनों से ये दूर कराती।
धन दौलत माया कहलाती
आकर नर को यह भटकाती,
चाँदी का दर्पण है माया
खुद को लखे न दिखे पराया।
ऊँचा पद अहम् को लाया
विनम्रता को तब ठुकराया,
चले गर्व से ताने सीना
अपनों संग अपनापन छीना।
सुंदरता पर गर्व किसी को
हेय दॄष्टि से देखे सबको,
स्वयं मुग्ध हो वह पगलाया
रूप क्षणिक है समझ न पाया।
ताकत पा कोई भरमाया
निर्बल पर भी बल अजमाया,
शक्ति सदा नहीं साथ निभाती
शामत बड़े बड़ों की आती।
प्रबल समर्थन कोटि जनों का
नहीं हमेशा रह पाता है,
समय सदा कब एक सा रहता ?
वही नरेश कभी रंक भी होता।
माया के लक्षण ये सारे
व्याकुल मनुज, दुखी इस मारे,
मिले मुक्ति माया से जिस पल
नर जीवन तब होता है सफल।
मोक्ष को पाना बहुत सरल है
जिसने जाना वही सफल है,
मोह ख़तम सँसार से करलो
मोक्ष स्वयँ मुठ्ठी में करलो।
इच्छाएँ जब ख़त्म करोगे
मोक्ष को अपने निकट करोगे,
इच्छाएँ जब रहें अधूरी
पुनर्जन्म की है मजबूरी।
माया त्याग, विरक्ति पालो
जीवन अपना सफल बनालो,
विजय प्राप्त इच्छाओं पे कर
खत्म मृत्यु जीवन का चक्कर।
By Dr. Hari Mohan Saxena

यह रचना माया, अहंकार और मोक्ष के गूढ़ सत्य को बड़ी सरल भाषा में उजागर करती है। कविता जीवन के उन सूक्ष्म भावों को छूती है, जिन्हें हम रोज़ देखते तो हैं पर समझ नहीं पाते। माया के रूपों को जिस सहजता से उन्होंने चित्रित किया है, वह मन को आत्मचिंतन की ओर ले जाता है। सचमुच, इच्छाओं और अहंकार से मुक्त होकर ही जीवन सार्थक बनता है। अत्यंत सारगर्भित और प्रेरक रचना।
Very nice sir ji
Very Good sir ji
Very very nice poem
Well written, nice poem