महामारी जीना सिखा गयी
- Hashtag Kalakar
- May 9, 2023
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By Abhishek Tyagi
खिड़की पे बैठी गौरैय्या हताश हैरान है
ताक रही गली मोहल्ले जो सहसा1 बेजुबान है
कहीं यह छल तो नहीं? खुली आँखों से चकराई
क्या सच में लाचार है कपटी इंसान की चतुराई?
कर्फ़्यू के बाजारों से गुज़री दाना चोंच में दबाई
कूचे के कोतवाल से यहाँ-तहाँ टकराई
बोला भाग जा, भयंकर महामारी का आह्वान2 है
अपने अपने विकर्मो का आया इम्तिहान है I
बरसो का सिमटा दर्द कंठ से छटपटा उमड़ा
चीं-चीं चह-चहाहट, अहसास अल्फ़ाज़ों में उतरा
अरे ओ बशर3! ये तो मौत का बिछौना है
सुध नहीं तुझे, तेरा ही नहीं, यहाँ मेरा भी कोना है I
पाप, अपराध, फरेब, अहम् के जो फेरे हैं
दोषी तू है, अनाहक4 सहतें सभ के डेरे हैं
यही समय है, चरित्र के दागों को चिंतन से धोना है
संभल जा, सवंर जा, बाहर फैला क्रूर कोरोना है I
चंद सिक्को की वासना में पारितंत्र5 में विष घोलता है
तृष्णा6 से मासूमो के भविष्य क्यूँ तोलता है?
खुदा ने बेशुमार दिया जल, वायु व अरुणा7
शर्मसार नहीं तू, जो दे रहा उसे कोरोना?
जाग जा! ज़रा संभल, अब द्वन्द नहीं आमना8 कर
सहम मत शोध-विज्ञान से सामना कर
देरी न हो, धरा को समन्वय9 से पुनः पिरोना है
झाँक दर्पण में, निकाल जो भीतर दबी करुणा है I --------------------------------------------------
1. अचानक 2. कहना, बुलाना 3. मनुष्य 4. बिना किसी कारण 5. पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) 6. इच्छा 7. उषा 8. मुकाबला 9. सम्मिलित होने का भाव
By Abhishek Tyagi

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