भिखारी
- Hashtag Kalakar
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By Dr. Hari Mohan Saxena
मिला राह में एक भिखारी
चेहरे पर उसके लाचारी,
भूख लगी थी, पेट था खाली
कुछ पाने की आशा पाली।
मैंने पूछा '"शर्म न आती ?
मुफ्त की रोटी तुम को भाती ?
मेहनत कर क्यों नहीं कमाते ?
निज कमाई से क्यों नहीं खाते ?"
मुझसे तब बोला वो याचक
हुआ हादसा एक भयानक,
जीवन में कुछ घटा अचानक
लुट गया मेरा सभी यकायक।
मेरी थी इक बड़ी दुकान
घर था सुन्दर, आलीशान,
प्यारा सा परिवार था मेरा
प्रबल विपत्ति ने इक दिन घेरा।
घाटा लगा, गया व्यापार
सदमे में डूबा परिवार,
क़र्ज़ में फँस गए, व्यथा अपार
बिखर गया मेरा संसार।
दुःख से पत्नी उबर न पाई
दवा में निकली पाई पाई,
बच्चों ने भी घर को छोड़ा
चले शहर, कुछ करें कमाई।
मेरी पत्नी ने दम तोडा
तभी भाग्य ने साथ भी छोड़ा,
सभी साथियों ने मुख मोड़ा
सबने मुझे अकेला छोड़ा।
बदहवास सा घर से निकला
मुझे रौंदता वाहन निकला,
मेरे हाथ पैर को तोड़ा
मुझे कहीं का भी नहीं छोड़ा।
काल किसीका जब आता है
कई विपत्तियाँ संग लाता है,
नर कुछ समझ नहीं है पाता
नभ से गिरा, धरा पर आता।
विवश भाग्य से क्या कर सकता
भीख माँगकर पेट हूँ भरता,
कुछ मिल जाए धन्य समझता
मगर शिकायत नहीं मैं करता।
मुझसे बदतर हैं वो सारे
हक़ दूजे के जिसने मारे,
पेट भरा फिर भी लालच में
फिरते दिन भर मारे मारे।
झूठ बोलकर,जग को ठगकर
मानवता का गाला घोंटकर,
जिसने दौलत खूब कमाई
व्यर्थ है उसकी पाई पाई।
भीख माँगकर जब मैं खाता
दुःख न किसीको मैं पहुँचाता,
रूखी खा संतोष मैं पाता
गोद में प्रभु की मैं सो जाता।
By Dr. Hari Mohan Saxena

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