बचपन की यादें
- Hashtag Kalakar
- Oct 28
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By Sumit Kumar Agrawal
अभी बडा हो गया हूं कभी बच्चा होता था
दुनियादारी से विमुक्त दिल सच्चा होता था
छोटे छोटे हाथ पैर छोटे छोटे नैन नाशक
मुझे देख लोगों का दिल मुस्कुराता था
जिम्मेदारी का बोझ होता हैं अब रोज रोज
पहले तो मस्ती में ही दिन कट जाता था
आज अपने बच्चों के जिद पूरी कर रहें हैं
कभी अपनी जिद भी, पूरी करवाता था
साइकिल मे बैठ कर पूरा सहर, घूम आता
दो रुपए के मूंगफली से, जेब भर जाता था
स्कूल मे कट्टी मिट्टी से, दिन गुजर जाता
खेल खेल मे ही सिर फोड आया करता था
महीनों की गर्मी छुट्टी ,मामा घर मे मनती थी
छुट्टी नहीं त्यौहार था, एक उत्सव होती थी
बागीचे मे छिप छिप ,फल खाया करते थे
मामा जी से छुप छुप,नट्टू घुमाया करते थे
बुआ जी के बच्चे जब घर आया करते थे
सारे बच्चे मिलजुल ,खूब मस्ती करते थे
रस्ते पे ही क्रिकेट और पीथू खेला जाता था
साथ में ही गोलगप्पे पेट मे पेला जाता था
वो मस्ती सब छूट गई ,अब बड़े हो गए हैं
जिम्मेदारी सब ले कर, पैरों पे खड़े हो गए हैं
जिम्मेदारी का बोझ है अब, समय काटते हैं
सभी बड़े मिलकर ,बचपन की मस्ती बांटते हैं
By Sumit Kumar Agrawal

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