बचपन की अठखेलियां
- Hashtag Kalakar
- May 8, 2023
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By Manju Singh
सर्दियों की गुनगुनी धूप बीते लम्हे याद दिलाती है,
जो बीत गया उसे अहसास कर लबों पे मुस्कान आती है ।
बीत गया न जाने कब खिलखिलाता बचपन,
अब जवानी की दहलीज भी,
जिम्मेदारी की चादर ओढे धीरे धीरे गुजर रही है ।।
याद आती हैं सर्दिओं की वो सर्द रातें,
जब मिल बैठ रजाई में मूंगफली-गुड़ चबाने को माँ दिया करती थी ।
झाड़ू जब वो सुबह लगाती,
पीछे से कुछ पड़े दाने चुपके से मैं चुन लाती ।
एक छींक आती नहीं कि माँ नाक मुँह से विक्स लगाती,
न जाने कब बहती नाक अपने आँचल से पोंछ जाती ।।
गर्मिओं कि छुट्टिओं में नाना-नानी के घर जाते,
दोपहर को जब सभी सोते,
हम आम तोड़ने बागों में धीरे से पहुँच जाते ।
टपके आम चूस के मिल खाते,
कच्चे आम चुपके से गेहूं कि बोरी में दबा लाते ।।
याद आती है वो बचपन कि अठखेलियां,
जब त्यौहार में मिल खेला करते लूडो कि गोटी ।
रिमझिम बरसता था जब सावन,
खूब बनती थी मूँग कि पकोड़ियां ।
भर जाता था जब बरसते पानी से घर का आँगन,
कागज कि कश्ती बना तैराते ।।
छप छप करते पानी में भीग गर्मियों में,
निकली घमोरियों की तपिस मिटाते ।
न जाने कब बीत गया खिलखिलाता बचपन,
तब याद आती है बीते बचपन की अठखेलियां ।।
By Manju Singh

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