प्रारब्ध भोगना पड़ेगा
- Hashtag Kalakar
- May 9, 2023
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By Abhishek Tyagi
सौर्यमंडल1 की सभा सजी थी
लिए परिक्रमा2 से अल्प विराम
दूर दराज़ से आये गृह नक्षत्र सभी
क्रमबद्ध सुनाने व्यथा-वेदना तमाम I
ज्येष्ट सूर्य की नियमित समिति थी
होते आये थे धरा के ही गुणगान
अलग-थलग, ईर्षु, उदास बैठे थे सभी
जीवनोपयोगी3 तत्त्व जो लिए थी वो तमाम I
बुद्ध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति आदि की अरज थी
क्यूँ धरा पे ही पाते जीव, वनस्पति, इंसान?
शिकवे अपने-अपने लाये सभी
मांगे वायु, जल, सूरज से उचित दूरी, तापमान I
दूर खड़ी धरा सभ चुप सुन रही थी
वृद्ध मन-तन लिए दूषित जान
देख हैरत में आये गृह सभी
ढूंढे गुजरा हुआ उसका अभिमान I
लोभी इंसान की नीच हरकत थी
न किया था प्रकृति का वाज़िब सम्मान
विषैले हो गए जैविक स्त्रोत सभी
लुटि अस्मिता4 देख शरमाया ब्रह्माण्ड I
थकी, हताश धरा चेताई थी कभी
अन्य ग्रहों का दोहन भी उसका अरमान
बिन तेरे ही सुखी हैं! घुर्राये सभी
पछतायेगा! गर लाँघि रेखा, किया अपमान I
देख-सुन भानु की आंखों में आग थी
भीषण ताप से गर्जाया प्रधान
दहशत में आये गृह, चंद्र सभी
वर्षों पहले कभी देखा था ऐसा आह्वान I
विनाश की ये प्रक्रिया नयी नहीं थी
प्रारब्ध5 में फसा, कहे खुद को बलवान
भोगते रहेंगे कर्मफल सभी
जीने का सलीक़ा जब तलक न सीखेगा इंसान I
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1. सूर्य के चक्कर लगाने वाले ग्रह/उपग्रह 2. चक्कर लगाना 3. जीवन के लिए उपयोगी 4. आत्म सम्मान 5. पूर्व जन्म के कार्य
By Abhishek Tyagi

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