पाप और पुण्य
- Hashtag Kalakar
- Nov 8
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By Dr. Hari Mohan Saxena
पाप, पुण्य की क्या परिभाषा
इसे जानने की अभिलाषा,
जो दोनों का भेद बता दे
ऐसा गुरु प्रभु मिलवा दे।
प्रभु ने इक वर नेक दिया है
सबको उसने विवेक दिया है,
इसी विवेक को तुम पहचानो
पाप पुण्य का भेद भी जानो।
जो करके संतोष है आता
ह्रदय प्रेम से भर भर जाता,
दुखी मनुज भी राहत पाता
जग में वही पुण्य कहलाता।
दीन दुखी की सेवा करता
भेद भाव नहीं मन में लाता,
उसका काम पुण्य कहलाता
वह मनुष्य भी स्वर्ग में जाता।
पशु, पक्षी का दर्द समझता
निर्धन का हमदर्द जो बनता,
तन मन धन से सेवा करता
सच्चा पुण्य उसी को मिलता।
घायल नर, पशु हो या परिंदा
लँगड़ा, लूला हो या अँधा
सेवा करना जिसका धंधा
पुण्य आत्मा है वो बंदा।
प्यासे को पानी पिलवाता
भटके को जो राह दिखाता,
भूखे को देकर खुद खाता
उसका कर्म पुण्य कहलाता।
पाप कर्म वह है कहलाता
कोई किसीको यदि रुलाता
देकर दुःख तकलीफ़ किसी को
उसकी खुशियों को छिनवाता।
कर घायल तन, लूट के सब धन
करे किसीका दुखमय जीवन
कुटिल हँसी से आहत करता
ऐसा पाप कभी नहीं फलता।
निर्ममता, बर्बरता करता
लूटपाट, अपमानित करता,
व्यंग भरा अट्टाहस करता
उसको प्रभु क्षमा नहीं करता।
अहँकार से मत भर जाओ
जीवन भर मत पाप कमाओ,
सजा पाप की जब पाओगे
जीवन भर फिर पछताओगे।
पुण्य कर्म मधुर फल देता
जीवन खुशिओं से भर देता,
उसको प्रभु मोक्ष दे देता
स्वर्ग सा उसका घर कर देता।
By Dr. Hari Mohan Saxena

Nice poem
पाप पुण्य पर एक सुंदर कृति
Very nice poetry
Beautiful words ,very relevant
Poet has filled his flying colours of talent in this poem very well 👍👍👌👌