नायिका
- Hashtag Kalakar
- 17 hours ago
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By Ridham Chaudhary
चलो एक कहानी की शुरुवात करते हैं, आज से, अभी से, इसके पात्र भी तुम चुनो और कहानी भी, फिर जियो इसे तुम, कभी इसका नायक बन तो कभी नायिका, तो कभी वो ख्याल बन जिसने की शुरुवात इस पूरे सफर की। यह सब कितना सरल, कितना खूबसूरत लगता हैं ना। पर असल जिंदगी भी तो कुछ ऐसी ही है, तुम स्वयं अपनी कहानी बनाते हो, उसके नायक/नायिका का निर्माण करते हो। पर क्या कभी खुश हो पाते हो नायिका के उस चित्रण से है शायद हां पर शायद नहीं भी। यह सोचा कभी तुमने की ये ‘शायद नहीं‘ का होना क्यों संभव हो सका वो भी उस कहानी में जो तुमने बनाई, जिसका हर पात्र तुम्हारा और वो ख्याल भी। क्या अपने ख्यालों को इस असंतुष्टि से मिलवाया है तुमने कभी, नहीं! क्योंकि अगर मिलवाया होता तो ये दोनों मिल एक सुखद यात्रा पर जा चुके होते और जी रही होती अपनी उस नायिका को तुम। मेरा यह जाने से मतलब ख्यालों के मर जाने से कतई नहीं है अपितु यहां तो केवल उस असंतुष्टि पर सब वार्ता है। खैर बिना असंतुष्टि भी कहां हे वह नायिका संभव है क्योंकि उसके तो मूल में भी उड़ने – गिरने व चलने की जो कड़ी है जो उसके अस्तित्व को बनाए रखती है उसके लिए भी जरूरी है बने रहने का इस असंतुष्टि के गुण का उसमें। खैर! कहां तुम ये सन्तुष्ट व असंतुष्ट के बीच चली आई, जाना ही है तो जाओ अपनी उस नायिका के भीतर जिसका निर्माण किया है तुमने, खोजों उसमें, क्योंकि उसके भीतर ही होगा वो ‘कुछ‘ जो नहीं पाया है तुमने, जो तुम्हारी इस असंतुष्टि की लिमिट को इनफिनिटी केओर अग्रसर कर दे। जहां इन्फिनिटी है तुम्हारी संतुष्टि और इसी बीच जियो अपनी इस कहानी को, हर पहलू को इस कहानी के भी और उस नायिका के भी, इतना कठिन भी नहीं, सच, बस यूं हे कोशिश करो शायद यह काली स्याही हे मिलवा दे तुम्हारी नायिका के उस ‘कुछ‘ से तुम्हे।
By Ridham Chaudhary

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