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जवानी

Updated: Aug 21

By Gaurav Abrol


बहक जाती है जवानी कभी नजरों के मैखाने में तुझे पाने की तो हसरत थी पर गम ना हुआ गंवाने में l ये ऐसी सच्चाई है ना दुनिया जिससे बच पायी है क्या गलत हुआ भला हमसे कुछ ख्वाब जंवा सजाने में ll बहक जाती है जवानी कभी नजरों के मैखाने में ll

छुप -छुप के करना खिड़की से, कभी तेरा वो दीदार तुझसे था , हुआ जाने कब तेरी तस्वीरों से प्यार l चुभते है कांटे दिल में भी ये इल्म हमे बखूबी था मशरूफ रहे हम फिर भी गुल राहों में तेरी बिछाने में ll


बहक जाती है जवानी कभी नजरों के मैखानों में ll

तेरे घर की ज़द में रहने की कभी ऐसी मेरी ज़िद थी मालूम तो था मंजूर नहीं , ना तेरी हरगिज थी l तुझे रूठना था सो रूठ गई रहे अव्वल हम सदा मनाने में ll बहक जाती है जवानी कभी नजरों के मैखाने में ll

रोज़ शाम को तेरा अपनी छत पर आना कभी नजरें मिलाना और फिर मिलाकर चुराना l मेरे दबे जज़्बातों को अपनी अदाओं से हवा देना उन्हीं जज़्बातों की लो में हम लगे खुद को जलाने में ll बहक जाती है जवानी कभी नजरों के मैखाने में ll


By Gaurav Abrol



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