जब रात तुम्हारी बात छिड़ी
- Hashtag Kalakar
- May 11, 2023
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Updated: Jun 3, 2023
By Shalabh Maheshwari
हाथो मे थे जाम के प्याले, यारो की थी महफिल सजी,
चुप बैठा था खोया तुझमे, जब रात तुम्हारी बात छिड़ी।
जब रात तुम्हारी बात छिड़ी, तो सबने अपनी राय रखी,
कोई बोला तुमको चांद सरीखा, कोई बोला तुमको हूर परी,
कोई खव्वाब सजा के तेरे कितने स्वप्नलोक भी टाप गया,
कोई याद मे तेरी जाने कितने जाम पेश जाम ही डाल गया।
कुछ आँख पे तेरी मरते थे, कुछ चाल के भी दिवाने थे,
कुछ बिन बोले बस मन ही मन मे तुमको चाहने वाले थे,
कोई मखमल जैसी बाँहो पे तेरी अपनी जान छिड़कना था,
कोई सोच हसीन जुल्फो को तेरी ठंड़ी आंहे भरता था।
फिर उनमे से एक बोल पड़ा, जब तुम्हे फला दिन देखा था,
कि वक्त वंही थम गया हो जैसे, वो मंज़र ही कुछ ऐसा था,
मेरे पे भी जब ध्यान गया, एक यार ने चुटकी ले ही ली,
बोला ऐसे क्या बैठे हो, क्या तुम कुछ भी बोलोगे नही।
मैं एक कोने मे बैठा था, हाथो मे लेके जाम भरा,
कहता भी कुछ तो डर था कि कंही राज़ न खुल जाता तेरा,
मैं उनसे कैसे कह देता मै तुमसे मिल कर आया था,
लाखो कि जान है जो उसके पहलू मे वक्त बिताया था।
तेरा पर्दा भी जरूरी था, रूसवाई ना तेरी हो जाती,
यह शर्म जो तेरा गहना है, इस महफिल मे ना खो जाती,
सो हंस के सबको टाल दिया, बोला कुछ मैने ज्यादा नही,
चुप रहना मेरा बेहतर था, जब रात तुम्हारी बात छिड़ी।
By Shalabh Maheshwari

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