चोट लगी थी
- Hashtag Kalakar
- May 10, 2023
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By Abhishek Bagri
चोट लगी थी माँ ने डाँटा, खूब रोया मैं,
और फिर माँ की गोद में सोया, खूब रोया मैं
जुदा हुई थी तु मुझसे मैं हँसते हँसते घर आया,
शाम ढली और दिखा अंधेरा, खूब रोया मैं,
रंज रखे थे जब तक दिल मे, तब तक सबकुछ ठीक लगा
जब भी खुशियां ढूंढी मैंने, खूब रोया मैं,
आँगन मे आकर सोया था तारों से बतियाने को,
चाँद दिखा और याद आये वो, खूब रोया मैं,
जग ने ठोकर मारी मुझको, जग से कैसा बैर मुझे,
जो तूने मुझको गलत बताया, खूब रोया मैं,
होश नहीं उस रात का मुझको, मैं तो मय मे खोया था,
सुबह मुझे साकी ने बोला, खूब रोया मैं,
फराज कहते है मुझसे, “मैं आईना हूं “
आईने में जो दिखे नहीं तुम, खूब रोया मैं,
चोट लगी थी माँ ने डाँटा, खूब रोया मैं,
और फिर माँ की गोद में सोया, खूब रोया मैं
रंज : दर्द
मय : शराब
साकी : शराब पिलाने वाला
फराज : अहमद फराज
By Abhishek Bagri

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