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चाँद, तारा और सूर्य — एक अधूरी पर ख़ूबसूरत दोस्ती

By Chanpreet Kaur


इंसान यादों में गुम हो जाता है न, बस “प्यार” शब्द सुनते ही। ऐसे ही एक अजनबी मेरी ज़िंदगी में भी आया था। न मेरे कोई दोस्त थे, न ही मुझे उम्मीद थी कि कभी बनेंगे। और तभी उसकी एंट्री हुई — मेरा पहला पुरुष मित्र, जिसे मैंने तुरंत “बेस्ट फ्रेंड” का ख़िताब दे दिया।

 मेरा नाम है चाँद, और मेरी सबसे प्यारी दोस्त का नाम है तारा। उसी की वजह से वह लड़का मेरी ज़िंदगी में आया था। पसंद तो उसे तारा थी, पर पता नहीं कैसे वो मेरा दोस्त बन गया। ये स्कूल के दिनों की बात है। उसने मुझसे तारा का नंबर माँगा था ताकि जान सके कि वो स्कूल आएगी या नहीं। मैं अकेले रहना पसंद करती थी, जबकि वो स्कूल में सबको जानता था — मुझे छोड़कर। मेरे जन्मदिन पर मैं खुद केक लेकर स्कूल गई थी, और सब हैरान थे कि सच में मेरे कोई दोस्त नहीं हैं। मुझे उस बात का कोई ग़म नहीं था — तब तक। 

सूर्य ने तारा से पूछा था, “सच में इसके कोई मेल फ्रेंड नहीं हैं?” तारा ने कहा, “नहीं, कभी इसका विश्वास मत तोड़ना।” तारा हमेशा मेरी चिंता करती थी और जितना सम्भव होता, संभाल लेती थी। वो सितंबर 2011 की बात है — और आज हमारी दोस्ती को पूरे 13 साल हो चुके हैं। पर इस कहानी में एक उम्मीद है — चाँद की उम्मीद। 

पहले दिन से जिसे मैंने अपना ख़ास दोस्त कहा, वो आखिर मेरा इतना क़रीबी कैसे बन गया? 

स्कूल के बाद मैं दिल्ली चली आई, और वो बैंगलोर। लगा नहीं था कि फिर कभी मिलेंगे। लेकिन जब भी तारा घर आती, वो हम दोनों को साथ बुला लेती थी। और जब तारा नहीं होती, तो मैं खुद ही सूर्य को कॉल कर लेती, कहती — “चलो, मिलते हैं।” वो बहुत कम बोलने वाला था, और मैं बहुत ज़्यादा। दिल्ली में रहते हुए हम फोन पर बात करते थे। जब घर लौटते, तो बिना मिले वापस अपने सपने पूरे करने नहीं निकल पाते थे। इस तरह हमारी दोस्ती एक सफ़र बन गई। अजीब बात ये थी कि जब भी वो मुझे याद करता, मैं किसी न किसी तरह पहुँच जाती थी — जैसे दिल को पहले ही पता चल जाता हो। और जब मुझे लगता कि वो मुझसे कुछ कहना चाहता है पर कह नहीं पा रहा, मैं तारा को कॉल करके कहती, “इससे बात कर, इसे तेरी ज़रूरत है।” 

एक दिन वो दिल्ली आया — अपने बिज़नेस ट्रिप पर। उसने कहा, “मैं पाँच दिन यहाँ हूँ, और हम मिलेंगे।” वो पाँच दिन मेरी ज़िंदगी के सबसे यादगार दिन थे। अपनी मीटिंग ख़त्म करते ही वो मुझे कॉल करता, और हम मिलते। एक दिन मैंने मिलने से मना कर दिया — बस यूँ ही, मन नहीं था। पर वो फिर भी आया, मेरे हॉस्टल तक। आख़िरी दिन मैंने पूछ ही लिया — “तुम्हारे तो इतने दोस्त हैं, फिर सिर्फ मुझसे ही रोज़ मिलने क्यों आए?” उसने मुस्कुराकर कहा — “बस ये बताना था कि तू भी मेरे लिए उतनी ही ज़रूरी है, जितना मैं तेरे लिए हूँ।” मेरी आँखों में आँसू आ गए। छह साल की दोस्ती में उसने पहली बार ऐसा कुछ कहा था। छह साल लगे चाँद को सूर्य को सच में अपना दोस्त बनाने में। 

अब जब भी मुझे लगता है कि मैं कुछ नहीं कर सकती — सिर्फ “सूर्य” का नाम याद आते ही एहसास होता है, कि अगर मैंने उसे अपना दोस्त बना लिया, तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ — बस दिल लगाकर। दोस्ती बनाना आसान नहीं, पर अगर उसे सच्चे मन से निभाओ, बिना किसी उम्मीद के — तो सामने वाला भी उस दोस्ती को सलाम कर देता है। 

कहानी का संदेश : सच्ची दोस्ती किसी “उम्मीद” पर नहीं, बल्कि “एहसास” पर टिकी होती है। जब दिल साफ़ हो, तो रिश्ता वक्त नहीं — ज़िंदगी भर टिकता है।


By Chanpreet Kaur

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