गुफ्तगू
- Hashtag Kalakar
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By Dr.Monis Rizwan
चंद पल मिले जब आराम के,
चल रहे थे हमारे दरमियाँ,
सिलसिले ये कुछ सवाल के।
गुफ्तगू ये मेरी थी खुद से,
या थी ये चांद से?
लफ़्ज़ों की जुस्तजू जो चल रही थी शाम से।
अब चाहें मिसरे ये मेरे,
मुझे पागलों का नाम दे…
या किसी ऐसी ही शाम
मिला दे मुझे, अपनी ही पहचान से।
By Dr.Monis Rizwan

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