खिड़की
- Hashtag Kalakar
- 14 hours ago
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By Anu Radha
साधारण सी दिखने वाली चोकोर आकार की यह खिड़की समाज का वह दर्पण है जो हर समय हर दिन हमें समाज का दर्शन कराती है। हर दिन घटने वाली घटनाएं ,हर दिन इसके सामने से गुजरने वाला वह पल कई कहानियां ढूंढ लेता है। कहीं गुदगुदाती हंसी मोहल्ले की, कहीं रोना बिलकना,गरीबी, आंसू , कहीं बच्चों की किलकारियां ,कहीं शोरगुल, कहीं बाजार की रौनक है, कहीं खुशी ,तो कहीं गम।
यह खिड़की जो सब सहती है सब सुनती है पर फिर भी खामोश है चुप है किसी से कुछ नहीं कहती, किसी से शिकायत नहीं करती कि यह कह सहती है। पत्थर की दीवारें चुनवा कर घर तो अक्सर बना लेते हैं लोग, पर ये झरोखे ना हो तो दुनिया भी सुंदर नहीं। जो घरों में बंद इन नजारों को देखते हैं खुद को बहुत महफूज़ समझते हैं। समझ के दायरों में अक्सर अकल छोटी पड़ जाती हैं। जिंदगी के झुके मदार पर अक्सर दुनिया भारी पड़ जाती है ।यह खिड़कियां ना होती तो जिंदगी छोटी पड़ जाती है।
By Anu Radha

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