क्यों
- Hashtag Kalakar
- Nov 7
- 1 min read
By Manpreet Singh
वाक़िफ़ क्यों नहीं कर देते,
इस कदर तुम बातें क्यों छुपाते हो
ये मासूमियत के तुम्हारी भी क्या ही कहने,
मालूम है हमें-
जो बाज़ार मे ये तुम हुस्न पर बोलियाँ जो लगते हो
नियत मे खोट तो ख़ुद की है,
फिर ये वफ़ाई का पाठ तुम हमें क्यों पढ़ते हो
प्यार को तुम्हरे प्यार कहूँ या जिस्मों की सौदागिरी,
सच-सच बोल दो ना क्या करना क्या चाहते हो
रज़ामंदी मैं भी अब तो रज़ा नहीं होती,
हूह!! यूँ बोल कर हर बार ऊँचा अब तुंम अपनी बात मनवाते हो
वक्त है के अब ये रास्ते अलग हो जाए तो बेहतर ही होगा,
के इतना तंग तो हूँ अकेले नहीं होते थे-
जितना अब तुम पास रह कर सताते हो
अब भी वक्त है बोल दो,
इस कदर तुम बातें क्यों छुपाते हो।।
By Manpreet Singh

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