कृषि वित्त
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कृषि वित्त

By Rakhi Bhargava


कृषि वित्त व इसकी मुख्य समस्या मानसून चक्र मूल्य अस्थिरता : आपूर्ति श्रृंखला की अनिश्यतता क्या ..........एक समाधान हो सकता है|

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भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का सकल घरेलु उत्पाद में 19.40% योगदान है परंतु भारत में ज़्यादातर क्षेत्रों में कृषि परंपरागत तरीके से होती है | इस कारण कृषि के श्रम की लागत बढ जाती है तथा कृषि क्षेत्र मानसून तथा जल वायु की परिस्थितियों के अनुकूल रखने पर निर्भर करता है | कृषि क्षेत्र के मौसमी बेरोज़गारी तथा एक ही परिवार के सारे सदस्य शामिल होते है जो कि प्रति व्यक्ति उत्पाद आय को कम करते है |

इन सब बातों के अलावा कृषि क्षेत्र की कई अन्य समस्याएं है जो कि उपयुक्त या असंतुलित मानसून चक्र, जलवायु का अनुकूल ना रहना मूल्य अस्थिरता, आपूर्ति श्रृंखला में उतार चढाव तथा कुछ कृषि उत्पादों का जल्दी से खराब होना (जैसे सब्ज़ी उत्पादन, फल उत्पादन आदि)

कृषि क्षेत्र के विकास तथा कृषिगत आय बढाने के लिए कृषि क्षेत्र किसानों को इन खतरों, जोखिम से बचाव करने की ज़रूरत है जिसका मुख्य कारण फोकस आकृतिक उत्पादों से किसानों के हुए नुकसान को बचाने के लिए परम्परागत फसल बीमा (प्रधान्मंत्री फसल बीमा योजना) पर रहता है | यह योजना उत्पादन में हुए नुकसान को कवर करती है परंतु किसानों को कीमतों के उतार चढाव से असुरक्षित छोड देती है | यह अंतर कृषि उत्पादों के लिए डेरिवेटिव से फायदा उठा कर किया जाता है |

फ्यूचर तथा options डेरिवेटिव उत्पाद है जो कि अपनी कीमत किसी दूसरी संपत्ति (underlying asset) से उत्पन्न करते है तथा डेरिवेटिव कोंट्राक्ट में बेचने या खरीदने का अनुबंध पहले से निर्धारित कीमत पर शामिल होता है | ओप्शन दो तरह के होते है काल तथा पुट ओपशन (options).

विशेष रूप फुट आपशन इसमें बहुत उपयोगी साबित हो सकता है जो कि किसान को पहले से न्यूनतम कीमत निर्धारित (बिजाई से पहले) तथा जो खुले बाज़ार से कीमतों के बढनेसे फायदा उठाने का विकल्प भी देता हो |

इसका अर्थ यह है कि अगर कीमते भविष्य में नीचे गिरती है तो किसान अपनी फसल पूर्व निर्धारित भाव पर विक्रेता को बेच सकता है परंतु कीमते बढने की स्थिति में खुले बाज़ार में बेच सकता हो | फुट आपशन को खरीदने के लिए एक निश्चित प्रिमियम किसान को आपशन राईटर को देना पडेगा |

जोखिम का स्थानांतरण : इस प्रक्रिया के द्वारा जोखिम का स्थानांतरण किसान से बाज़ार के प्रतिभागी को हो जाता है जो कि जोखिम लेने के लिये इच्छुक तथा सक्षम है | सरकार को एक कृषि फुट ओपशन बनाने के बारे में सोचना चाहिए जिसमें सरकार पूर्ण या आंशिक भागीदारी ले | जैसे कंपनियों की सामाजिक ज़िम्मेदारी फंड (CSR) को इसके लिए उपयोग किया जा सकता है | सम्पूर्ण रूप से विकसित डेरिवेटिव बाज़ार खुले बाज़ार को भी कृषि उत्पादों के बारे में कीमत का संकेत अच्छे से दे सकता है तथा सूचनाओं के असंतुलन को भविषय के कृषि भावों के बारे में किसानों को समनवित कर सकता है |

यह सूचना असंतुलन (Information Asymmetry) को वेब मांडल में संक्षेप में बताई गई है | यह मांडल बताता है कि किसान को फसल उगाने का निश्च्य करना है जिसके भाव वर्तमान में या पिछ्ले वर्ष अन्य स्तर पर होते है | फसल चक्र पूरा होने के बाद आपूर्ति ज़्यादा होने के कारण कीमत गिर जाती है | अगले सीजन में कम कीमत के कारण दूसरा फसल उगाते है तथा कीमत फिर से प्रतिकूल रहती है |और कीमत पुन: उच्च स्तर पर चली जाती है | अत: बाज़ार उच्च व निम्न कीमतों के बीच परिचालित होता रहता है जो कि अधिकता तथा कमी का परिणाम होता है |



जल्दी से खराब होने वाली कृषि वस्तुओं जैसे की टमाटर, फल ऐसे उदाहरण है जब कम कीमतों के कारण किसानों को अपनी फसल सडक पर फेकनी पडती है| आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में इसके उदाहरण मिलते रहते है | जब कम आपूर्ति की दशा में उच्च स्तर के भाव किसान की उपज होने के कारण आय नहीं हो पाती है तथा आपूर्ति अधिक होने के कारण आय स्तर वही रखता है |

दोषपूर्ण बाज़ार : एक स्वस्थ डेरिवेटिव बाज़ार उच्च तथा विश्वसनीय संकेत दोनों हितधारकों किसान तथा बाज़ार प्रतिभागी को भेज कर कर सकता है कीमतों के बारे में अच्छे निर्णय लिये जा सके|

सरकार की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हर स्तर पर है | न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रोत्साहन की घोषणा तथा कुछ धान वाली फसलों के लिये खुला बज़ार खरीदना भी कुछ एक फसलों के लिये मनमानी को बढावा देता है |

फिर भी सरकार द्वारा कार्य करने के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव के लिये उत्प्रेरक का काम कर सकता है तथा निजि क्रम क्षेत्र को अधिक खरीदारी दिए जाने की ज़रूरत है |

एक बार अनुकूल बाज़ार स्थितियों के निर्माण (conductive market) होने पर डेरिवेटिव बाज़ार पर्याप्त गहराई तथा तरलता लेन देन की संरचना तथा प्रतिभागियों की संख्या के संदर्भ में कर सकता है | जब तक किसान उत्पादक संघों तथा वित्तीय जागरूकता तकनीकी कंपनियों के माध्यम से किसानों को जागरूक तथा प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत है | बस बाज़ार में किसानों के भाग्य को बदलने तथा उनके कृषि उद्यमिता को विकसित करने तथा उसे तथा उसे सच्चे अर्थों में आत्मनिर्भर बनाने की संभावनाएं हैं ।

कृषि क्षेत्र की एक अन्य समस्या बदलती जलवायु अपर्याप्त मानसून तथा कृषि क्षेत्र में फसल चक्र को न अपनाने के कारण है। इसके निदान के लिए किसानों को उगाई जाने वाली फसलों में विविधता फसल चक्र की वैज्ञानिक आवश्यकता प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन जीरो बजट खेती किए जाने की संभावना तलाशना तथा जागरूकता फैलाई जाने की जरूरत है। इसके लिए कंबरसम में उगाई जाने वाली फसलें तथा विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देने वाली फसलों की प्रजातियां के विकास तथा संवर्धन किए जाने की जरूरत है ।इसके लिए परंपरागत कृषि विज्ञान केंद्र तथा कृषि विश्वविद्यालय में शोध के लिए नए निवेश तथा शोध के विकास एवं समर्थन किए जाने की जरूरत है। यद्यपि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ने किसानों को उत्पादन के जोखिम से तो कुछ हद तक राहत प्रदान की है परंतु इस योजना में भी बहुत सारे सुधार किए जाने की जरूरत है इन सुधारों में सबसे ज्यादा फसल के उत्पादन स्तर को 1 ग्राम पटवार इकाई से खेत के लेवल तक ले जाने की जरूरत है। फिर भी यह योजना कीमतों के उतार-चढ़ाव संबंधी जोखिम तथा कृषि क्षेत्र में आपूर्ति श्रंखला से संबंधित समस्याओं तथा कृषि के आधारभूत संरचना में सुधार के लिए बहुत बड़े निवेश तथा इच्छाशक्ति की जरूरत है जो कि सरकारी तथा निजी क्षेत्र दोनों की समन्वित भागीदारी तथा सरकारी तंत्र द्वारा संबंधित कानूनों में सुधार एवं अनुकूलतम नीतियों की जरूरत है। यदि यही सब उपाय दलगत राजनीति तथा क्षेत्र विशेष को छोड़कर संपूर्ण देश के लिए किए जाएं, तभी भारत का किसान तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था जिससे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की आत्मा का है, उन्हीं के शब्दों में आत्मनिर्भर तथा समेकित विकास के भारत की संकल्पना को साकार होते देखा जा सकता है।


By Rakhi Bhargava





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