कहीं गांधी गुम ना हो जाए
- Hashtag Kalakar
- Oct 25
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By Ravi Kant
कहीं गांधी गुम ना हो जाए, आओ कुछ बात कर ली जाए।
कुछ नील उठाओ चंपारण से, कुछ सौराष्ट्र का नमक मिलाओ,
खादी के रेशों से झांको,आज फिर गांधी को ढूंढ कर लाओ।
उनके संग ही तो चले थे तुम, कभी राम तो कभी रहीम थे तुम,
आज उनके कदम थोड़े लड़खड़ा रहें हैं, वो आज तुम्हें फिर बुला रहें हैं।
चलो न, ढूंढ लाओ उनकी वो लाठी और पुराने चश्मे को,
पीर पराई को जो अपना कहते थे, ढूंढ लाओ न उन अपनो को।
डाक टिकटों में वो अब भी हैं, अंकित हैं कई पन्नों पर,
सिद्धांतों में उनका ज़िक्र होता है, नाम पर उनके आंदोलन होता है,
सवाल है अब भी,क्या वास्तव में कोई परिवर्तन होता है?
बुलंदियों को छूता भारत दिख रहा है मुझे, मगर कुछ सवालों के बीच,
कुछ हल्की सी धुंध है धर्म के नाम पर, तो कहीं कुछ मिलावट है इन उजालों में,
आचरण बदलते समाज में, कुनीतियाँ- कुरीतियां संग आ रहीं हैं नजर।
इतने सवाल लेकर फिर आएं हैं गांधी, मगर फिर साथ चलने आएं हैं गांधी।
एक बार फिर चलो दांडी के किनारे, सत्य और अहिंसा के सहारे,
चलो कुछ बहा आते हैं, चलो कुछ परिवर्तन फिर लाते हैं।
चलो तोड़ते हैं फिर इन दीवारों को, उन मूल्यों को फिर अपनाते हैं।
आज सोचा आकर कहूं तुम सब से, चलो गांधी जयंती ऐसे मनाते हैं,
कहीं गुम हो जाए ना गांधी,कुछ लकीरें मुस्कुराहटों की खींच देतें हैं आज,
चलो गांधी जयंती ऐसे मनाते हैं।
By Ravi Kant

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