कसाईबाड़ा
- Hashtag Kalakar
- Aug 11
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By Tulsi Chhetry
अरे मैं तो कहती हूं कसाई बाड़े में भी अब उतर ही जाते हैं , वैसे भी जांघो, पुट्ठों के गोश्त का भाव बंद कमरों में लगाते ही हो ना?
शायद इसीलिए त्रिवेणी के चौराहे पर वह पगली दिन के उजाले में लोगों का चेहरा पहचान जब यह कहती है- "ओय राति तोएं मूर लोगोत की कोरिसिली"
(ओए रात को तूने मेरे साथ क्या किया था ।)
तो मुझे बिल्कुल भी हैरानी नहीं होती बल्कि मैं उन लोगों के माथे पर पड़ी शिकन का मतलब समझ लेती हूं जो उसे "पागल कहीं की" कहकर दिन के उजाले में दुत्कार देते हैं।
हां इस पगली को तो ये भी नहीं मालूम कि उसके पेट में कोई जीव पल रहा है ना जाने किस का ? शुरुआती दिनों में दूर से ही उसको देखकर मैं ठिठक जाती थी- बड़ी बुरी आदत है उस पगली की पास आते ही हाथ फैला , अपने मुंह की ओर इशारा करने लगती है। बदबूदार जटाओं से बाल ,दिनभर त्रिवेणी बाजार की गलियों में बिना जद्दोजहद किए कहीं भी घूमती मिल जाएगी।
पर अभी गत कुछ महीनों से उसके स्तनों में भारीपन और पेट में नए संसार को पनपते देख तरस आता है। शायद सातवां महीना होगा उसका ।
मैं कॉलेज के बाद अब अक्सर त्रिवेणी के चौराहे के आस पास खुद को नजर आने लगी हूं। एक कप चाय तीन नमकीन बिस्कुट के अपने आर्डर के साथ एक चाय और दो पाव का बिल उस पगली के नाम का ना बना लूं तो एक बेचैनी सी लगी रहती थी।
शायद उससे कुछ लगाव हो गया है, कुछ अपनत्व ,कुछ पुरानी पहचान या शायद एक जात की भावना हो ? बात कुछ भी हो पर उसके बढ़ते पेट को देख मुझे रातों में भी उसका ख्याल अनायास ही हो आता था, करवट बदल लेने पर भी ख्याल नहीं बदलता।
एक शाम मेरा आर्डर लेने के बाद बैरा बोला उस पगली को आज सरकारी अस्पताल ले गए हैं ,दिन में यही रास्ते में दर्द से तड़प रही थी, मैंने हिसाब लगाया तो यह नवा महीना ही था।
पहली बार कई दिनों बाद रात को बिना करवट बदले ही सोई मैं।
कॉलेज की परीक्षाएं समाप्त हुई लगभग २ महीने बाद शहर को अलविदा कह कर मैंने त्रिवेणी से बस पकड़ी बस की खिड़की से वो पगली नजर आई, हाथ में एक जीवित मांस का लोथड़ा थामे अचानक से कितनी बुद्धिजीवी नजर आने लगी थी वो। रास्ते भर यही सोचती रही औरत चाहे अपंग हो या पागल ऊपर वाले ने मां होने के सारे हुनर उसे सीखा कर ही भेजा है। मुझे लगा ये मेरी उससे अंतिम मुलाकात होगी । पर लगभग ३ साल बाद एक सेमिनार के सिलसिले में फिर से आना हुआ , सफ़र की थकान थी या पुराने शहर की हवा काफी देर तक सोती रही और फिर हड़बड़ाहट में तैयार हो रिक्शे में गंतव्य की ओर रवाना हुई ,आगे देखती हूं चौराहे पर कुछ लोग जमा है, रिक्शे से बैठी रहूं या उतर जाऊं की पहेली को रिक्शे वाले के ब्रेक ने सुलझा दिया, वो दौड़ कर भीड़ का जायज़ा करने गया ,तभी मुझे उस पगली की वही जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी
""ओय राति तोएं मूर सुवाली लोगोत की कोरिसिली?"
(ओए रात को तूने मेरी बेटी के साथ क्या किया था?)
मैं दौड़ कर वहां गई तो देखती हूं, रास्ते के बीच एक निर्जीव मांस का लोथड़ा पड़ा है जांघों के बीच बहुत सा खून सूखा हुआ था । तभी भीड़ से आवाज़ आई "पागल कहीं की" और धीरे-धीरे भीड़ छट गई
By Tulsi Chhetry

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