कश्मीर की रानाई
- Hashtag Kalakar
- Nov 18, 2022
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By Anand Gupta
कश्मीर की रानाई
मेरी तंहाई
कैसी हो?
क्या तुम अब भी छत पर जाती हो
चांद देखने रातों को
उलझते बादलों में
अब भी उलझती हो अपने जज्बातों को
मोहब्बत सिखाती हो तारों को अपनी आंखों से
क्या अब भी कायनात ठहरती है
जब तुम कुछ...रुक कर बताती हो
क्या तुम अब भी हवाओं में बहती हो,
वादी मे उतर जाती हो
झेलम सी इठलाती हो,
ज़ाफरान सी महक जाती हो?
किसी शायर को अल्फाज़ दे जाती हो?
या मौसमों को शायरी सिखाती हो?
नाखून दांत में दबाकर क्या
तुम अब भी मुस्कुराती हो?
या मेरे एक जिक्र से अपना चेहरा छुपाती हो?
थोड़ा शर्माती हो?
और फिर याद कर मुझे थोड़ी बिखर सी जाती हो?
बताओ क्या तुम मुझे कभी याद भी करती हो?
तो कश्मीर की रानाई
मेरी तंहाई,
तुम कैसी हो?
क्या मैं अब भी याद आता हूं
जब हवाएं सुर्खझीलें बर्फ़ हो जाती हैं?
जब चिनार बहुत अकेले होते है, राश्तों पर बिछे होते हैं.
क्या अब भी तेरे अश्क़ उतरते हैं
मुझे सोचते जब शामें अधूरी और रात अकेली हो जाती हैं?
क्या वहां मेरी तरह वादियां भी रुबाई गाती है
जब तुम हाथ उठा कर अंगड़ाई लेती हो?
आग जला कर रखने से भी जब सर्दी नही जाती
तो क्या मेरी याद ओढ़ कर सो जाती हो?
जिस फ़िरन में मेरी खुशबू कभी छूट गई थी
क्या अब भी उसमे मुझे महसूस कर पाती हो?
बताओ, क्या तुम अब भी मुस्कुराती हो?
वो जो रोड़ तुम्हारे घर जाती है
उसपर क्या कभी मेरे निशान ढूंढ पाती हो?
तो बोलो?
कश्मीर की रानाई
मेरी तंहाई
कैसी हो?
ये दुनियां मुझसे पूछती है कि तुम कैसी हो? कौन हो?
अब मैं क्या बताऊं कि तुम कौन हो?
तुम फ़िरदौस की बरनाई हो या मेरी किस्मत की रुस्वाई हो?
तुम अभी वजवां से पूरी हो या मेरे गीतों सी अधूरी हो?
बिस्मिल्ला की शहनाई हो या जीवन की पुरवाई हो?
शिकरा की मस्ती हो या हांजी की मजबूरी हो?
या मेरे होंठों की कोई जिद जरूरी हो?
क्या तुम ये सब बताओगी?
फिर से क्या थोड़ा सताओगी?
क्या तुम कभी लौट कर आओगी?
पता नहीं, पर
मेरा वादा है
मैं आऊंगा, ये सारे दरिया पी जाऊंगा
पहाड़ तोड़ जाऊंगा
सब पार करके
एक दिन ये हिज्र मिटाउंगा
तुझसे वादा है, मैं आऊंगा
मैं कैसे लिखूं इन गीतों में
क्या कहूँ इन अधूरे हर्फ़ों में,
पर जो कुछ इस दिल में धड़क रहा हैं
तुमको बिन कुछ कहे सब बतलाऊंगा.
मैं आऊंगा, एक दिन तुमसे मिलने
मैं आऊंगा.
By Anand Gupta

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