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कर्म तुम्हें नहीं छोड़ेगा

By Sia Mishra


कई सौ सालों पहले, कुंडनपुर नामक गाँव में एक धनवान और ऐश्वर्यवान व्यापारी रहते थे, जिनका नाम था धन्ना सेठ। उनके पास इतनी अधिक मात्रा में धन इकट्ठा हो गया था कि उन्होंने निश्चय लिया कि वे किसी भी ऐसे आदमी को एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएँ देंगे, जो उन्हें लेने के लिए अगले जन्म में लौटाने का वचन देगा। 

उन दिनों, लोगों का मानना था कि जो भी कर्म वे करेंगे, वह भविष्य में लौटकर उनके पास अवश्य आएगा। इसलिए सेठ के गाँव में से कोई व्यक्ति इस धन-राशि को उसकी शर्त के साथ स्वीकारने नहीं आया। तब धन्ना सेठ ने यह बात पड़ोस के गाँव मे बताने का आदेश दिया। उस गाँव में से भोलू नामक एक आम आदमी इस शर्त को मानने के लिए आया। उसने सोचा, “मुझे धन की आवश्यकता अभी है। इसका भुगतान अगले जन्म में करना है। वैसे भी, अगला जन्म होता भी है या नहीं, ये किसी ने देखा नहीं है। भुगतान के बारे में बाद में सोचेंगे।” सो, वह सेठ के पास गया तथा शर्त के पत्र पर अपने हस्ताक्षर भी कर दिए। इसके पश्चात उसने सहस्त्र में से बीस मुद्राओं का उपयोग करके एक बैलगाड़ी खरीदी। 

जब वह अपना धन लेकर अपने गाँव पुनः लौट रहा था, वह एक चावल के खेत के पास से गुजरा। वहाँ खेतों को फसल बर्बाद करने वाले पक्षियों से सुरक्षित रखने के लिए कई धोख खड़े किए गए थे। तभी अकस्मात भोलू को किसी के ठहाका लगाकर हँसने की आवाज़ आई। उसने इसपर ध्यान नहीं दिया। परंतु, वह आवाज़ दोबारा और इस बार पहले से अधिक ज़ोर से सुनाई पड़ी। अब भोलू ने सोचा, “लगता है कोई नादान बालक मुझे डराने का प्रयत्न कर रहा है।” भोलू ने अपनी बैलगाड़ी रोकी और चारों ओर इस हँसने वाले को खोजने लगा। उसने बैलगाड़ी के नीचे खोजने के बाद जब सिर ऊपर उठाया, तब उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। वहाँ पर एक भैंस का खोपड़ा, पता नहीं कहाँ से प्रकट होकर हवा में लटक रहा था। वह भौंचक्का रह गया और निर्णय नहीं ले पा रहा था कि वह रुक कर इस खोपड़े से बात करे या अपनी जान बचाने के लिए भाग जाए।  कुछ समय बाद उसने बहुत प्रयास करके उससे बात करने की हिम्मत जुटाई। भोलू बोला “ऐसी क्या बात है भैया, जो इस तरह हँस रहे हो?”

“मैं तुम्हारे भाग्य पर हँस रहा हूँ। हा हा हा हा हा।” यह कहकर वह और ज़ोर से हँसने लगा। 

“तुम मेरे भाग्य पर क्यों हँसते हो? तुम्हें क्या पता, आज मैंने एक सहस्त्र स्वर्ण मुद्राएँ पाई हैं। मैं धनवान बन गया हूँ।” 

“यही तो मेरे हँसने का कारण है। चलो मुझे बताओ कि तुम्हें ये धन कहाँ से मिला?”

फिर क्या? भोलू ने अपनी पूरी कथा उस खोपड़े को सुना दी। उसने बताया कि “मैं धन्ना सेठ के यहाँ एक सेवक का काम करता था, हाँ वही सेठ जिससे तुमने यह धन लिया है। मैंने उनसे सौ स्वर्ण मुद्राएँ उधार ली थीं और काफी उधार चुका भी दिया था, बस थोड़ा-सा बाकी रह गया था। परंतु, जैसे ही मेरी मृत्यु हुई, वैसे ही मेरा दूसरा जन्म एक भैंस के रूप मे धन्ना सेठ के यहाँ ही हुआ। उस जन्म में मुझे बहुत सारा काम करना पड़ा क्योंकि उधार बाकी था। इतना परिश्रम करने के बाद भी मेरा कर्ज नहीं उतर पाया और मैं उसी भैंस के खोपड़े के रूप में रह गया। अब मैं वह कर्ज उतारने के लिए इन खेतों की रखवाली करता हूँ।”

भोलू उस खोपड़े की कहानी में इतना खो गया था कि वह कोई प्रतिक्रिया करना ही भूल गया। फिर खोपड़े ने अपनी कहानी खत्म करते हुए कहा “मैंने तो बस सौ मुद्राएँ ली थीं। तब भी मुझे ये जन्म लेने पड़े। जरा अपनी कल्पना करो, अगले जन्म में एक सहस्त्र मुद्राओं का बोझ अपने सिर पर लेकर घूमते हुए।” अब वह अपनी हँसी बिल्कुल रोक नहीं पा रहा था, और वहाँ से चला गया, भोलू को दुविधा में छोड़कर। अब भोलू को एहसास हुआ कि उसने कुछ गलत कर दिया है। वह सीधा धन्ना सेठ के पास वापस गया और विनम्रतापूर्वक उनसे कहा “आप कृपया अपनी नौ सौ अस्सी मुद्राएँ वापस ले लीजिए। मैं बाकी की बीस मुद्राएँ आपको कुछ समय बाद अवश्य लौटा दूँगा। परंतु सेठ नहीं माने। 

“क्षमा करें महोदय, परंतु एक बार जो वचन दे दिए जाते हैं उन्हें वापस नहीं लिया जाता। मैं ये मुद्राएँ पुनः नहीं लूँगा। बेचारा भोलू  मुद्राओं की पोटली लेकर घर की ओर चल दिया। 

रास्ते में उसने एक साधु बाबा को एक वृक्ष के नीचे ध्यानमग्न देखा। उसके मन में विचार आया की शायद कोई ज्ञानी ही उसकी सहायता कर पाए। वह बाबा के पास गया और सबसे पहले उनके चरणस्पर्श किए। बाबा बोले “कहो बेटा, क्यों इतने परेशान दिखते हो?” भोलू ने अपनी दुविधा बताई। बाबा ने बोला “अच्छा है, तुम्हें अपनी गलती समझ आ गई। तुम्हें ये तीन काम करने होंगे। पहला- उन पैसों का उपयोग करके अपने गाँव के सभी तालाबों, कुओं, और अन्य जल-स्रोतों को स्वच्छ करवाओ और यदि आवश्यकता पड़े, उनका पुनर्निर्माण कराओ। उसके पश्चात कुछ नहर-नालियाँ बनवाओ, जिससे लोग जल का प्रयोग सरलता से कर सकें। फिर तुम एक मंदिर खोलकर उसे चलाने का कार्यभार संभालो। इससे बहुत लोगों को रोजगार मिलेगा और वे अपना वेतन कमा पाएँगे। इससे मंदिर बनाने वाले मूर्तिकारों, उस पत्थर को खोदने और ढोने वाले लोगों, वहाँ पुष्प, आदि पूजन–सामग्री बेचने वालों और उत्सवों के अवसर पर मंदिर में आने वाले नृत्यकारों, गायकों और वाद्य-यंत्र बजाने वाले लोगों को आय मिलेगी। इतना ही नहीं, हर रोज प्रसाद बनाने के लिए जो खाद्य-पदार्थ उपयोग किए जाते हैं, उन्हें उगाने और बनाने वालों को भी अपना वेतन मिलेगा, दिये बनाने वाले कुम्हारों और अन्य चढ़ावे वाले सामानों का निर्माण करने वाले लोगों को भी पैसा कमाने का माध्यम मिलेगा। तो तुम्हें यह धन अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए खर्च करना है। इस तरह यह धन-राशि तुम्हारे अगले जन्म के लिए तुम्हारे सिर पर इकट्ठा नहीं होगी और कर्म तुम्हें नहीं पकड़ेगा।" भोलू को अब शांति मिली और उसको जैसा कहा गया था, उसने वैसा ही किया। 

इस कहानी से हमे यह सीख मिलती जी कि हम जो कुछ भी करते हैं या लेते हैं, वह निशुल्क नहीं होता और हमें उसका भुगतान भविष्य में कभी-न-कभी करना ही पड़ता है। 


By Sia Mishra


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