औरत — कोई कहानी नहीं, एक क्रांति है
- Hashtag Kalakar
- Nov 11
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By Himani Deepak Khude
राख से उठी हूँ मैं, अब आग बनूँगी,
जो कल तक चुप थी, अब आज कहूँगी।
मेरी चुप्पी को अब कमज़ोरी न समझना,
मैं जन्म देती हूँ — मिट्टी नहीं, संस्कृति गढ़ती हूँ।
घर की चौखट से संसद तक अब मेरी चाल है,
मैं आवाज हुँ,जो अब खामोश नहीं
सदियों से बाँध रखा, पर अब ये बंधन टूटेंगे,
पैरो मै बेड़ी थी जिम्मेदारी कि, वही कदम अब गरजेंगे।
मेरे आँचल में दया है, पर आँखों में तूफ़ान,
मैं सीता भी हूँ, मैं दुर्गा भी,मै सीमा नहीं विस्तार हुँ
ना सिर्फ़ रसोई, ना सिर्फ़ आँसू की कहानी,
अब मेरे शब्दों में है शक्ति, मेरी कलम लिखते है मेरी कहाणी।
ये औरत की क्रांति है — नफ़रत नहीं, न्याय की पुकार,
जहाँ हर बेटी सिर उठाए, वहीं सच्चा त्यौहार।
अब वक़्त है दुनिया बदले, सोच बदले ज़माने की,
वो औरत नहीं, एक लहर है जो थमती नहीं
वो कहाणी नहीं, एक क्रांती है जो रुकती नहीं
By Himani Deepak Khude

Very Good 👌