ऐतराज़
- Hashtag Kalakar
- Oct 28
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By Gayatri
हम तख़्त-ए-दिल छुपाकर रखा करते हैं,
ख़्वाहिशों को सोच में फँसाकर रखा करते हैं,
ना अपने ही लफ़्ज़ों, ना जज़्बातों का भी लिहाज़ है;
ख़ुदा की रहमत है यह मोहब्बत,
या दिल की शिकायतों का आग़ाज़ है;
जो मुकम्मल ना हो,
ऐसे इश्क़ से हमें ऐतराज़ है।
हम यूँ फ़ासले बनाकर रखा करते हैं,
आपकी नज़रों से नज़रें चुराकर रखा करते हैं,
ना हमारी मोहब्बत नज़दीकियों की मोहताज है;
शायद मुहाल होना ही इस रिश्ते का साज़ है,
जो मुकम्मल ना हो,
ऐसे इश्क़ से हमें ऐतराज़ है।
नज़्म तो बन गये हैं आप, हमारी आदत ना बन जाये,
कहीं यह इश्क़ अनजाने में इबादत ना बन जाये,
मोहब्बतों से ज़्यादा तो आशिक़, आदतों से बर्बाद हैं;
ख़ौफ़ है टूट जाने का, दिल की यही एक फ़रियाद है।
शिकायतें करना छोड़ दिया हमने; अब दुआओं में,
अगले जनम के लिये आपको माँग लिया करते हैं;
आजकल भीड़ में रहकर भी तन्हा जिया करते हैं,
हम अकेले में ही आँसुओं को रिहा किया करते हैं।
By Gayatri

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