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इस बार जन्नत में जमघट अलग है।

By Amol Mishra


पहले भी होती थी यूँ तो शहादत,

करते थे लोग उनकी इबादत,

पहले भी रोती थी छोटी सी बच्ची,

करते थे नेता जमके सियासत।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

वो आंखों में अबकी आंसू अलग हैं।

अलग हैं अबकी उन माओं की चीखें,

सिंदूर की चीत्कार अबकी अलग है।

पहले भी होती थी घुटन इस मन में,

थकता था विचलित हृदय इस पल में।

पहले भी सिसकती थी

कलम मेरी जम के,

रोता था पहले भी शब्द

पूर्ण विराम से डर के।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

कफ़न का तिरंगा अबकी अलग है।

अलग है जो बहा लाल रंग अबकी,

घाटी का तेवर अबकी अलग है ।

पहले भी होते थे जलसे जनाजे,

जलती थी चिट्ठी

मिटती थी यादें,

पहले भी रख के मुंह में बतासे,

टूट जाते थे कंगन

जो उनको थे प्यारे।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

ये सूनी कलाई अबकी चाबुक सी सख्त है।

गावों की गलियों का गुंजन अलग है,

बिन लाठी के पांव की ताकत अलग है।

अलग है उस बूढ़ी मां का ये क्रंदन,

वीरों का वंदन भी कुछ तो अलग है।

बैरक का हर एक आंसू अलग है,

तोपों की गूंज भी कुछ तो अलग है।

पहले भी गिरते थे सरहद पार से गोले,

पहले भी उजड़े थे कईयों मोहल्ले।

पहले भी घर में द्रोही छिपे थे,

पहले भी मरते थे कईयों धड़ल्ले।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

मोहल्ले के दीपों का अबकी ओज अलग है।

झेलम का पानी पिघला है अबकी,

सेबों का होता स्वाद अलग है।

अलग है अबकी लाल बत्ती का हूटर,

चढ़ता उसपर केसरिया रंग भी अलग है।

अलग है अबकी चढ़ती सांसों का मीटर,

खाकी का अबकी तेवर अलग है।

घाटी में अबकी कुछ तो अलग है...






पहले भी मिलती थी बेटे को भर्ती,

पहले भी बहनों को नए भाई थे मिलते।

पहले भी वादों में पेट्रोल पंपों का ज़िक्र था,

पहले भी मिलते थे कब्रों को मेडल।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

खुले बालों की अबकी हठ भी अलग है।

पहले भी देते थे चंद रुपयों में कीमत,

इस बार इनका कर्ज अलग है।

पहले भी होता था तिरंगा मय्यसर,

पहले भी होती थी वार क्राई भयंकर,

पहले भी कलमों में दर्ज हुई है शहादत,





पहले भी लगती थी पत्थर की मूरत।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

तिरंगे की अबकी तड़पन अलग है।

इस बार आहों की आहट अलग है,

इस बार जन्नत में जमघट अलग है।

पहले भी फिरता था व्यग्र होके ये मन,

पहले भी सुनता था सूइयों की टिक।

पहले भी नापे थे बंद कमरे में मीलों,

पहले भी लिखता था गुस्से में कवि मन।

इस बार लेकिन कुछ तो अलग है,

दो रातों का जगना अबकी अलग है।

आंखों में आंसू थे पहले भी निकले,

इसबारइनकीछुअनअलगहै।


By Amol Mishra




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