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इन रंगों में कहीं हम भी

By Purnima Raj


मैं इस कहानी के माध्यम से किसी की बगल वाली खुली खिड़की से झांकने की इजाजत लेकर आई है जो सच हो रहा है उसको बिना मिलावट का बस वैसे ही आपके सामने पीरो रही  हूं। उनकी खिड़की खुली मैं देखना शुरू कि आवाज आया वो मोबाइल पर बात कर रही थी। अमन अकेले एक दूसरे से अलग किसी अनजाने से शहर में हम रहते हैं इतने साल हो गए हम दोस्त हैं, मैं कविता लिखती हूं पर स्टेज पर अपने मुकम्मल पहचान नहीं बना पाई। तुम भी सिविल इंजीनियर हो घर बनाते हो पर अपने सपनों का घर नहीं बना पाए हो। हमने अपना काम बहुत मेहनत से शुरू किया था, पर फिर भी आज “हम हारे हुए नहीं है पर जीते हुए भी नहीं है” जिन रंगों में हम जाना चाहते थे वो आज असंभव सा लगने लगा है। 

                                            फोन स्पीकर पर था उधर से आवाज आया, तुम सही कहती हो परी, मैं अपने काम को सबसे पहले चुनता हूं, तुम भी अपने काम को पहले चूनती हो, पर कभी हम बनकर एक दूसरे का साथ नहीं दे पाए। हां ,मैं जानता था पहले तुम नर्सिंग कर रही थी उस दौरान तुमने लिखने को अपनी पहचान बनाने की बात मुझसे की थी। तुम्हें वक्त लगेगा भीड़ से अलग एक पहचान बनाने में ये मैं समझ चुका था। पर तुम तो ये जानती हो परी घर में लगातार एक पर एक बीमार हो रहे थे मैं उन सब को छोड़ तो नहीं सकता था हर महीने उस दौरान कोई ना कोई बीमार हुआ करते थे हमारे कमाए हुए पैसे अस्पताल के बिल में ही चले जाते थे। हम दोनों अलग-अलग जगह अपनी परेशानियों से लड़ रहे थे।

                       तुम बहुत बार रास्ता एक करने की बात करती थी मैं यही सोचता था तुम्हें परेशानी में क्यों डालूं , सारी चीज ठीक होने का इंतजार कर रहा था, पर आज तुमने जो तस्वीर भेजी वही देख रहा हूं जिसमें अर्धनारीश्वर है आधा शिव आधा पार्वती मां उनके दोनों के बच्चे गणेश जी और कार्तिक जी बहुत अच्छा लग रहा है देखकर लगा काश इन रंगों में कहीं हम भी, अमन मैं यही कहना चाहती हूं परेशानियां हमेशा आते जाते रहेगी। मैं से हम बनने के सफर में एक होकर अपनी मंजिल पाने की कोशिश करते हैं। अंत में यही कहना चाहती हूं मैं दावा के साथ कहती हूं हम हारेंगे तो बिल्कुल नहीं, जीतने की पूरी कोशिश करेंगे। हां परी मैं समझ गया हम शादी कर लेते हैं तुम अपना काम मुंबई में जारी रखो मैं भी अपने परिवार का देखभाल करता हूं जो रंग चाहिए जीवन में हम उसको पाने की कोशिश करते हैं, ठीक है अमन कहा कर फोन काट दी। 

                                        मैं सोच में पड़ गई आए दिन समाचार में पढ़ रही थी किसी लड़की ने अपने पति को ब्लू ड्रम में काट कर डाल दिया,  किसी लड़के ने अपनी प्रेमिका को काटकर फ्रिज में जमा कर जंगल में फेंक दिया। पर मेरे बगल वाले खिड़की में बस रंगों की पाने की चाहत थी। मैं समझ गई थी समाज में बहुत सारे रंग है मुझे कौन सा रंग चुना है यह चुनाव मेरा है अगर सही रंग तो जीवन में सही रंग भर पाऊंगी।


By Purnima Raj

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