इंसानों का खेत
- Hashtag Kalakar
- Nov 11
- 1 min read
By Dhruv Tangri
बीज बोता है fकसान नफरत के इंसानों के खेत में,
िजधर बरसात होती है जलन की और पानी जमता घमंड का,
िजधर कच्ची फसल भी टूट सकती है और पक्की फसल रूठ
सकती है, उस fकसान से जो बोता है बीज नफरत के
इंसानों के खेत में।
दाने अलग कर जलता है भूसा जैसे fचता जलती हो इंसानों
के खेत में, हर पौधा ढूंढता है मौका खुदका उल्लू सीधा
करने के fलए,
हर पौधा रचता है साजिश दूसरे पौधे का नाश करने के
fलए। fदखने में फसल हरी है पर fकसान जानता है
fकतनी खोखली है,
कौन जानता है fकस पौधे का समय आयेगा कटने के fलए इस इंसानों
के खेत में, समय आने पर सब कटेंगे और fफर fकसान बोएगा बीज
नफरत के इंसानों के खेत में।
By Dhruv Tangri

No words
Such delicate emotions, wrapped perfectly in words
Very well written
Excellent!!
समसामयिक