आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
- Hashtag Kalakar
- Oct 15
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By Vishvas Desai
ख्वाहिशों की मशालें कुछ अब भी जल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
पसीने की मुट्ठी से अब अपने घर को संवारा हैं,
मानो रात के अंधेरों में कुछ जुगनू आवारा हैं,
खुशियों की टोली चेहरे पे उछल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
थम गया हैं तूफान ज़िंदगी के इम्तहान का,
थक गया है दुश्मन अब तो अपने मैदान का,
चिंता की चिता धीरे धीरे जल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
बढ़ते हुए पौधे हवाओं से मिल रहे हैं,
रिश्तों के फूल अब फिर से खिल रहे हैं,
सूरज की गर्मी धीरे धीरे ढल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
आरज़ू के समंदर अब ठहरे हुए हैं,
घाव दिल के मेरे अंदर कुछ गहरे हुए हैं,
लेकिन साँसें उम्मीदों की धीरे धीरे चल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..
सवालों का झरना जबरदस्त बह रहा हैं,
जवाब उसके कानों में वक़्त कह रहा हैं,
आफतों की वो बर्फ अब कुछ गल रही हैं,
आहिस्ता आहिस्ता ज़िंदगी चल रही हैं..I
By Vishvas Desai

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