आज फिर.. जी चाहता है...
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आज फिर.. जी चाहता है...

Updated: Sep 20, 2022


By Avinash Deolia


आज फिर मोहब्बत करने को जी चाहता है...

वो रातों को जागने को जी चाहता है...

तेरे हुस्न पर मर जाने को जी चाहता है...

बस तेरी बाहों में सिमट कर रह जाने को जी चाहता है...


तुझे दुबारा अपनाने को जी चाहता है...

तेरी यादों में लिपटकर सो जाने को जी चाहता है...

तेरे जिस्म की खुशबू में खोजाने को जी चाहता है...

तेरी ज़ुल्फो में मुझे वो तेरा नूर नज़र आता है...




तेरी मुस्कुराहट में ये मेरा दिल खो जाता है...

सुनकर तेरे लफ्ज़ मेरा संतुलन हिल जाता है...

तेरी हर अदा पर मरजाने को जी चाहता है...

तुझे खो न दूं कहीं पाकर..मेरा जी घबराता है...


तेरी आंखों में डूब जाने को जी चाहता है...

पलकों के कोमल परदे में कैद हो जाने को जी चाहता है...

ये तेरी मोहब्बत में मुझे न कोई और खयाल आता है...

बस दिनभर भूल कर खुदको तेरा चेहरा नज़र आता है...


जो निकल जाऊं कहीं सफ़र पर...

हर रास्ता तेरी गली तक लेजाता है...

चलते चलते बस..ये मेरा दिल खोजाता है...


जो सुबह उठूं तो तेरा खत याद आता है...

दिनभर की सारी थकान भी तेरा एहसास दूर कर जाता है...

कह न सकूंगा कुछ और आगे...

यह शब्द बड़े कम नज़र आते हैं...

बस आज फिर..मोहब्बत करने को जी चाहता है...

तेरा होकर रहजाने को जी चाहता है...


By Avinash Deolia




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