आखरी मुलाकात
- Hashtag Kalakar
- 4 hours ago
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By Nazia Perween
आख़िरी बार ममलो, तो य ूँकि
सोज़-ए-दिल राख हो जाए।
िोई और तिाज़ा न रहे, जलते
वािे न रहे, ज़ख़्म-ए-तमन्ना न
रहे।
संग-ए-हज़ार रंज-ओ-ग़म िा
इतना तिाज़ा हो,
वो इज़्जज़तों िो लपेट आज़ार बन
ममट जाए।
आूँख उठाएूँ िोई उम्मीि तो
आूँखें छिन जाएूँ;
वो लुटे अश्िों सेन प िे कि एि
और मुलाकात िी राह ममल
जाए।
अब न हो जोश-ए-जुन ूँिा, न
दहलाित िा वक़्त;
अब न तल़्िी-ए-मशिवा िा, न
मशिायत िा वक़्त।
लुट चुिी हैशहर-ए-िआु ओं िी
हर बसीरत;
अब तो िामन-ए-शब-ओ-ग़म िो
फ़कत लह िा छनशान चादहए।
आज ट टे तुमसे रंग-ए-जुन ूँिे
िई नाज़ुि ररश्ते,
अब जुडेंगेिैसेये? इन्हेंक्या
सु़िन सूँवारेगा?
बडा अजीब हैयेदिल, हर ज़ुल्म
सहने िे बाि भी;
ममलेनुज़ ल-ए-िआु तो येकब्र
ति सर-ब-सर फ लेगा।
मुस्तबा है, येतय था, ग़म-ए-
रु़िसत तो शब-ए-बार ममला।
न इज़हार-ए-उल्फ़त, न अब
वक़्त-ए-इंतज़ार ममला; आख़िरी
बार ममला।
By Nazia Perween

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