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"Srishtikarta Ka Samman"

By Sandhya Tandon


सुबह का अखबार,नए समाचार,

कल कुछ हुए और घोटाले,

किसी निर्दोष की नृशंस हत्या,

कुलीन परिवारों में विवाद,

किसी नन्ही बेटी के साथ क्रूरता,बर्बरता और उसका देहावसान,

कई दिन मोमबत्ती जला कर लोगों का शोर और शोक,

फिर सब कुछ मौन!!

छलछला उठती हैं आंखें,

प्रतिदिन हम थोड़ा थोड़ा अंदर मरते

जा रहे हैं, आत्मा में,

आध्यात्मिक,मानसिक और शारीरिक परतों में!!

क्या नही है यह सच?

जब हम अन्याय के विरुद्ध नहीं उठा सकते अपनी आवाज़,

क्यों?

हमारा जीवन शांत कर दिया जाएगा,

जैव विकास के सिद्धांत के अनुसार,

हर वंशावली में परिवर्तन आते हैं,

प्रकृति भी शक्तिशाली का सहयोग करती है,

पर यह कैसा मानव है जो पीछे जा रहा है,पाषाण युग में वापस,

शिकार करता है अब,क्रूर,बर्बर जानवरों सा बर्ताव कर रहा,

सुना है जानवर भी तब तक शिकार नहीं करते जब तक भूखे नहीं होते,

उनमें भी दया,ममता,प्रेम और एकता होती है।

हम रोज़ करते हैं अखबारों,समाचारों में सामाज की कुरीतियों का मौन दर्शन,जिसमें होता है सिर्फ इंसानों की बढ़ती लालसा,असीमित इच्छाएं,धन और रूप का अहंकार,नाम और प्रसिद्धि की भूख,

संभ्रांत होने के नाम पर धन का लाखों करोड़ों पानी की तरह बहाना,

भूख से बिलखते बच्चों को मूक दर्शक बन देखना,

धनाढ्य कुलीन परिवारों का शक्ति प्रदर्शन तथा कमजोर वर्ग पे अतिक्रमण,

संभ्रांत होने के नाम पर धन का प्रदर्शन और उसकी और अधिक लालसा।

ऐसे में डार्विन का सिद्धांत गलत लगता है,

आज प्रकृति रो रही है,

कही सुनामी,कही हिमखंडों में दबे लोग,बाढ़,भूकंप और कही अकाल,

पानी और खून दोनो बोतलों में बिक रहा है।

स्नेह सीमित,रिश्तों में दरारें,धर्म के बड़े ठेकेदार बना रहे दंगो की नीतियां,जिनमें कुचले जाते हैं भोले भाले लोग,

कोई याद भी करो हमारे शहीदों को,जो अपना परिवार,माता पिता,भाई बहन,पत्नी,बच्चे,सबको छोड अपनी जान की परवाह किए बिना,

हमारी रक्षा के लिए बर्फ के तूफानों,रेगिस्तान की धूल और पानी की गहराइयों में हमारे लिए लड़ रहे हैं,वापस घर आते हैं,

तो अपनी भारतमां के मौन,सहमे,कायर और मूक दर्शकों की रक्षा के लिए शहीद होकर।



कुछ नेता तो कहते हैं यह तो काम है उनका, तनख्वाह पाते हैं वो,

लानत है ऐसे भ्रष्ट नेताओं पर,जिनके लिए शहीद होते हैं हमारे युवा बच्चे, भाई और बेटियां,

जो मन के भोले और देशहित के लिए अपने जीवन की परवाह ना करते हुए शहीद हो जातें और हम,

बस याद करते हैं उन्हें कभी कभी कुछ खास दिनों पर जो देश के नाम होते हैं दिवस।

क्या नही हमारा भी है दायित्व,

की हम उनकी कुर्बानी का शुक्रिया अदा करें,

देश का जो भला चाहते हैं उनका साथ दें,पर आज तो हर कोई पहले अपना स्टेटस मेंटेन और पार्टियों में समय व्यतीत करना चाहता है,शायद उनके लिए यही जीवन है,

कौन उन फौजियों की तकलीफ में शामिल होकर उनके परिवार का भला करना चाहता है,कौन भला उन फौजियों के जीवन, उनके परिवारों के लिए प्रतिदिन प्रार्थना करता है,अपने परिवार की तरह।

आज मानवीय भावनाएं कुचली जाती हैं,

नाम,धन, प्रसिद्धि,संपदा के लिए खून के रिश्ते काट दिए जाते हैं,

संपदा की ऊंचाइयों के आगे बौने हो गए हैं हम,

बुद्धिजीवी कहलाने वाले क्रूर होते जा रहे हैं,

शक्तिशाली,भ्रष्ट,धन संपदा के लालची बनाते हैं युद्ध की कुटिल नीतियां,

चारों ओर है धन की महिमा,घिनौनी नीतियां और धन विलासिता ही धर्म।

है धनवानों का सम्मान,

विद्वानों का अपमान,

आज धन खरीद सकता है सब कुछ,

शिक्षा, मकान,व्यापार, और नाम,

पर नहीं खरीद सकता ज्ञान,घर,प्रेम,भावनाएं,एकता और संस्कार।

कहां गए वो गान जब हम गाते थे,

आओ सब मिल झूमे गाएं,

इस धरती को स्वर्ग सम सुंदर प्रेम से परिपूर्ण बनाएं।

स्त्रियों का अनादर,

बुजुर्गों का अपमान,

न मान न सम्मान,

बढ़ते जा रहे हैं,

असंख्य वृद्धाश्रम,

अनाथों के अनाथाश्रम,

बच्चों का सीमाओं पर व्यापार,

भूखे बच्चों का पेट पालने एक मां का देह व्यापार,

पिता की जीवन भर की मेहनत और त्याग का तिरस्कार,

हम कहां जा रहे हैं,किस मार्ग पर चल रहे हैं,अब आत्मविवेचन का समय आ चुका है,

सब कुछ बन गया है एक सपना,

उस जीवन का,

जहां हो प्रेम,एकता,भावनाओ का मान और हर जीवन का सम्मान।

क्यों मौन हैं सभी,

आगे रखते सिर्फ अपने सीमित दायरे को और धन संपदा के अभिमान।

अब सिर्फ किताबों के अक्षरों में रह गए लगते हैं,

मानवीय भावनाएं,प्रेम की शक्ति,

सच की ताकत और सपनो की उड़ान।

क्या हम यथार्थ में हैं इंसान,

जो हो इंसानियत से भरा

और करे हर जीव तथा जीवन का सम्मान।

या फिर हम हैं मात्रा इंसान,एक जीव,

जो जैविक विकास में बन बैठा सबसे बुद्धिमान।

कब खत्म होंगे झगड़े,अपशब्दों से दूसरे जीवन के अपमान,कितनी आंखों में दर्द के आंसू,

मानवीय भावनाओं

का कुचला जाना,

उस मां का तिरस्कार जो बच्चे को नौ महीने अपनी कोख में पालती है,

साल भर अपनी गोदी में रखती है,

बच्चे को खिला खुद भूखी सोती है,

बच्चे को सूखे में सुला गीले बिस्तर पर सोती है

उसके बच्चों के पास महल में भी मां बाप के लिए नहीं है एक छोटा कमरा,

आके कोई किसी का दर्द नही बांटना चाहता,

मानसिकता में स्वार्थ की बू आती है।

लोग ही करते हैं अपने लोगों का इस्तेमाल,

कोई दुखी मां,कोई बेसहारा नाथ,

कोई सताई हुई बेटी, कोई निर्दोष अमानवीयता सहती बहू,

तो कितने अबोध बच्चे हैं अनाथ।

क्या हम “माता पिता” और “शिक्षक” नही बना सकते?

एक सुंदर मानवीयता,संस्कारों,,प्रेम तथा एकता की भावनाओ से भरी,

दुनिया,

जिसमें हो हर जीव और जीवन के लिए प्यार,आदर और सत्कार।

हम अपने बच्चों और युवा पीढ़ी को ऐसे दे संस्कार,

जिसकी कुल्हारी से उखाड़ फेंके वो अमानवीय व्यवहार,

गरीबी,अशिक्षा,नफरत,जलन,धन की लालसा,विलासिता भोगने की इच्छा,अच्छे,नाम और प्रसिद्धि का अहंकार।

बनाएं आदर,सत्कार,प्रेम,हर्षोल्लास और हर जीवन का आदर करता एक सच्चा मानव,

नाकी कृत्रिम बुद्धि का एक रोबोट,

जो आगे चलकर करे इस दुनिया पर राज और बना दे एक मशीनी दुनिया जहां न हों भावनाएं न बच्चों में संस्कार,

चलो उखाड़ दें नफरत,क्रूरता,अधर्म,,दुख और दर्द की जड़ों को,

और निर्मित करें एक “नवीन संसार”

जिसमें प्रफुल्लित हों मानवीय संस्कार।

हो नव निर्माण धर्म,एकता,भाईचारे,प्रेम,भक्ति,ईश्वरीय सद्गुणों,पुनीत संस्कारों से भरी दुनिया का।

जिसमें हो हर जीवन के प्रति दयाभाव,स्वतंत्रता से जीवन जीने की आज़ादी,,सच और ईमानदारी का भाव और गुणगान।

मानवीय गुणों से ओत प्रोत हो हर इंसान जो करे हर जीव के जीवन की रक्षा और सम्मान।

तब ही होगा उस नवीन संसार में,

सत्यता के साथ,

इस “सृष्टि” और “सृष्टिकर्ता” की वास्तविक भक्ति,साधना और सम्मान।

होगी हमारी सृष्टि की “सुरक्षा”,

खुलेगा दुनिया में एक नया आयाम,

यही होगी सच्ची मानवता की पहचान।

जो करेगी “सृष्टि” और “सृष्टिकर्ता” का सम्मान!!

जो करेगी “सृष्टि” और “सृष्टिकर्ता”

का सम्मान!!


By Sandhya Tandon



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Akritee Bahal
Akritee Bahal
14. Sept. 2023
Mit 5 von 5 Sternen bewertet.

Very heartfelt words..Keep up the good work.

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Sandhya
Sandhya
13. Sept. 2023
Mit 5 von 5 Sternen bewertet.

Gratitude to God and my mentors

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