Pehchan
- Hashtag Kalakar
- May 13, 2023
- 1 min read
By Surinder Kumar
भीड़ में खड़े होकर कभी पहचान नहीं बनती
निकलते है वहीं चहरे भीड़ से जज्बा होता है जिनमे कुछ, अलग कर दिखाने का
होता है विश्वास, मंजिल अपनी को पाने का
करते है साहस, कदम पहला लेने का
क्यूंकि किस्मत भी जूं ही मेहरबान नहीं बनती
भीड़ में खड़े होकर कभी पहचान नहीं बनती
होते है जिस आँख में भरे सपने
वो ना कभी सोती है
हर जीत से पहले, ऐक हार भी होती है
और होता है संघर्ष, जीवन भर का
क्यूंकि ऐसे ही कोई शख्शियत महान नहीं बनती
भीड़ में खड़े होकर कभी पहचान नहीं बनती
छूते हैं आसमान को वो ही
धरती से जो जुड़े रहते हैं
और बुरे वक़्त में खड़े रहते हैं करते है आदर, अपने बड़ो का
क्यूंकि बिना अपनों के राहें भी आसान नहीं बनती
भीड़मेंखड़ेहोकरकभीपहचाननहींबनती
By Surinder Kumar

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