Lafzon Ka Intezaar
- Hashtag Kalakar
- Sep 5, 2023
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Updated: Aug 2
By Rakhi Bhargava
उंगलियां चल रही है मेरी , पता नहीं किस का थामे हाथ,
लब्ज़ बन कर हवा, फैल गए हवा के साथ ।
उड रहा था एक एक लब्ज़, मेरे पन्नों पर सवार,
बस तेरे खयाल से मुझे है बेहद प्यार ।
कई दिनों से मानो जाने कैसे कैद थे जो जज़्बात,
मुद्द्तों बाद आज जैसे आज़ाद थे वो,
अनकही सी इस बेचैनी को, लिए अपने साथ,
दिन का मुसाफिर निकला, खुद पर ओढकर रात ।
अब न चांद सो पाएगा , न हम,
और न लव्ज के वपस आने का इंतज़ार होगा खत्म ।
लिखने को तो बहुत कुछ लिख जाते हम,
पर लव्ज़ों में बयान कर पाए ऐसे न है हालात,
बस तेरी मोहब्बत ही सम्भाले है मुझे ,
नहीं तो मै अकेली और कैसे कटे ये चांदनी रात ।
By Rakhi Bhargava

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