By Birkunwar Singh
बैठे बैठे एक ख्याल आया है
अर्श-ए-इलाही से मेहमान आया है
हिसाब है कुछ करना साकी
जन्नत-ए- फिरदौस का राम आया है
कैसे मानू वो एक है
लेकर बैठा मज़हर अनेक है
क्यों मुज़्ज़्स्समे साज़ी से मांगू दुआ
मूरत भी तो आख़िर रेत है
कैसे बढ़ाऊं कदम उसके दर पर
गरीब क्यों बैठे बाहर उसके दर पर
क्यों आख़िर सर उसके आगे झुकाए
क्या निम्रता में मिल जाता वो दर पर
कैसे कोई करे गुजरिश बिन करे सुकराने की नुमाइश
कोई कपडा चढ़ाते तुझ पर क्या थी वो तेरी खुद की ख्वाहिश
कैसे हर कोई अलग बनाया
गरीब अमीर में फर्क है पाया
दो वक्त की रोटी पर सताया
क्या ये सब है तेरा खेल रचाया
कैसे भीतर अपने में जाएं
सच्चाई क्या है सब को बतलायें
क्यों पन्ने भरे वो कागज के
आओ एक बार समुंदर में डूब जाएँ
कैसा ये रंग है महकाया
कैसे जीव का जीवन रचाया
कैसे आब से दरिया बनाया
जैसे इश्क़ फूलों से ही पाया
कैसे करूं गुमान तुझ पे साकी
हर मुश्किल में तेरी याद को पाया है
बैठे बैठे एक ख्याल आया है
अर्श-ए-इलाही से मेहमान आया है
By Birkunwar Singh
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