By Manisha Mullick
हर कदम पर
इक मंकां देखा है मैंने,
हर छत पर
इक धुंधला सा
आसमां देखा है मैंने,
जिस्म देखे हैं
रास्तों पर फिरते हुए,
रुहों को आवारा सा
भटकते देखा है,
बंद दरवाजों से
भागती चीखें देखीं हैं
खामोशी को आंखों से
चिल्लाते देखा है,
जाने सांसें क्यों हर बदन की
बदन में घुट रही हैं,
हर हाथ को
मौत की दुआ मांगते
देखा है मैंने,
सुन्न अहसास नीलम सपने,
ना ये अपने हैं
ना वो अपने,
जाने क्यों हर जिस्म में
जिंदगी को मैंने
जिंदा रहने के लिए
मरते हुए देखा है ।
By Manisha Mullick
Comentários