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Kal Raat
By Sagar Awasthi
रात का सफर था, चांद मेरे साथ साथ चल रहा था ।
ख्वाबों में तू, आंखों में नमीं, चेहरे पर उदासी छाई थी ।
कल रात फिर मुझे नींद नहीं आई थी ।।
अंधेरे में बैठा था, मेरे साथ सिर्फ़ मेरी तन्हाई थी ।
तेरी यादों में मेरी सिसकियांँ उभर आई थी ।
कल रात फिर मुझे नींद नहीं आई थी ।।
आंखों में दर्द, लबों पे कंपन, सांसों में तेरी खुशबू उतर आई थी ।
मेरे दिल के हर हिस्से में बस तू ही तू समाई थी ।
कल रात फिर मुझे नींद नहीं आई थी ।।
सन्नाटे की ठंडी हवा कुछ कह रही थी मुझसे ।
मेरी ख़ामोशी का राज़ पूछ रही थी मुझसे ।
एक पल को लगा मानो कुछ पैगाम लाई थी ।
देखते ही देखते चांद में तेरी तस्वीर उतर आई थी ।
कल रात फिर मुझे नींद नहीं आई थी ।।
By Sagar Awasthi