By Dr. Shalini Thakur
जहाँ तक खुला आसमान बाकी हैं।
मुझे मालूम है मेरी उड़ान बाकी है
पर नया सफर शुरू करूँ भी तो कैसे
अभी तो पिछले की थकान बाकी है........
सब कहते हैं मंजिलों का सफर आसां तो नहीं
पर थक कर बैठना भी नहीं है सही
माना बढ़ते जा रहे हैं फासले
पर शुरू तो कर ये कदमों के सिलसिले
जानती हूँ कि मिटा नहीं सकती
फासले जो दरम्यान बाकी हैं
सब कहते हैं सृजन कर चल गगन के पार
तू ही करेगा नहीं लेगा कोई अवतार
वक्त की लहरों में खुद को बह जाने दे...
न रोक अपने चुप को सब कह जाने दे
पर सोचती हूँ किसके सहारे चलूं
अभी तो खुद से मुलाकात बाकी है।
सब कहते हैं- बढ़ा एक कदम जोड़ती चल कदमों की कायनात को
उठा हाथ बांधले मुट्ठी में हालात
मत डर फिर सजने दे ख्वाबों की बारात को पार करना ही होगा तुझे हर मुश्किलात
को
सफर यह आखिरी तो नहीं मंजिलों के सिलसिले भी थमेंगे नहीं
चाह नई राह नयी मैं वो नहीं ना वो बात रही
टूटी हैं उम्मीदें कई पलकों से गिर गये सपने कितने
वक्त में छूटे अपने कितने
अधूरी रह गई ख्वाहिशें कितनी
अब तो सिर्फ नाम बाकी है
बसरुकनानहींहैकहीजबतकजानबाकीहै।
By Dr. Shalini Thakur
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