Din Kahi Or Rat Kuch Or
- Hashtag Kalakar
- May 9, 2023
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By Dharmendra Bharti
दिन कोई और है,
रात कुछ और है ।
शहर ये अजनबी,
बात कुछ और है ।
थकान अपनी जगह,
सांस कुछ और है ।
वक्त तसल्ली भी दे
लेकिन वक्त कुछ और है ।
दिन कोई और है ,
रात कुछ और है ।
घर की दहलीज नाराज है,
राह कुछ और है ।
हम है कही और
हमराह कही और है ।
सब पहचाने दर्द लिए है ।
सबकी पहचान कुछ और है ।
दर्द कुछ और है ,
दवा कुछ और है ।
बोल सरकार ताज कहां रखूं।
ताज है कहीं के सर कही और है ।
मुकद्दर मुझे अपने ही पानी में पिघला रहा है ।
मेरा जाम है कही
और बर्फ कही और है ।
है नही कलम न कागज का कुछ पता ,
अल्फाज है कुछ और
बात कुछ और है ।
घड़े का पानी जोर बहुत लगाता मियां,
आग लगी है कही और
प्यास कुछ और है ।
दिन कही और है रात कुछ और है ।
By Dharmendra Bharti

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