Dear Purush
- Hashtag Kalakar
- May 10, 2023
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By Apoorva Sharma
पुरुष की बेरो जगा री
कलंकि त ऐसी
मा नो कहीं को ई ना ज़ा यज औला द रो ना उसका ना मर्दी की नि शा नी हर मि ज़ा ज सब्र से सह ले चा हे उसकी वा मां गी
सुत बने गर्व उनका
संभा ले बखूबी हर जि म्मेदा री उम्मी दों का गहरा सा गर
भंवर में उलझा पतवा र धा री अग्नि परी क्षा देती है कभी
ये आधी आबा दी भी
कलेजा इसका भी फटता है घुमड़े हुए बा दलों को
हो बा रि श की आजा दी
अथक प्रया सों को इसके
मि ले कभी तो शा बा शी
सुकून भरी को ई रा त
गरमा हट लि ए एक हा थ
हो वज्र-हृदय के सि रहा ने भी
अस्ति त्व-कि रण को ई रह जा ए
हो चहुं ओर जब प्रश्नचि न्ह की अंधि या री
दर्द इसके ओढ़ें
मरहम की एक चा दर
जी वन के इस को ला हल में
हो को ई ता न तो सुर वा ली
पौ रुष को मि ले
तनि क स्त्री त्व की हक़दा री
देवी संग पूज्य देव भी
धरा का हर मा नव है
समभा व का अधि का री
By Apoorva Sharma

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