By Narendra Rajpurohit
ये बरसती बौछारै उस मासूम चेहरे पर
मेरे अल्हड़ मन को मोहित कर जाती है
भीगी भीगी लटो से गिरकर बूंदे जब
उसके अधरो तक सफर कर जाती है
ईर्ष्या सी होती उन बूंदों से मुझे जब
मेरे हिस्से का प्यार वो ले जाती है
मेरे दिल में जल रही आग भी अब
इस मौसम में और धधक जाती है
By Narendra Rajpurohit
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