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Balatkar Yaado Ka Hatyara
By Deepak Kumar Agrawal
बीते वे पल,
हस्ते वे निहार रही थी।
पर आने वाली राह,
कठिनाइयां दिखा रही थी।
क्या पता था कि अंधेरा जल्द मेरी,
राह पकड़ लेगा।
सुबह को रात,
और मेरी ज़िंदगी नरक बना देगा।
अब वह पल याद करती हूँ,
शाम होने का इंतजार,
रात की माँ की लोरी,
और सुबह की थपकियां याद करती हूँ।
उन दरिंदो ने झंझोर दिया मुझे,
तोर दिया मुझे,
और जब जरूरत पूरी हुई,
मार दिया मुझे।
याद आता हैं,
जब अरमान लेकर आई थी,
खूबसूरत ज़िन्दगी की चाहत लेकर आई थी,
पर खुदा मुझे ज़िन्दगी में ज़िन्दगी देना भूल गया,
मुझे खुद के लिए नही पर दरिंदो के लिए छोर गया।
अब याद आती हैं भाई की,
जब मुझसे बहुत झगड़ता था,
परंतु वह दर्द,
यह दर्द से ज्यादा डराता था।
पता नही वक़्त तो गुजर रहा था,
पर अब दर्द बहुत हो रहा था।
हौसले तो खूब मिले मुझे,
पर अब जीने का मन नही कर रहा था।
By Deepak Kumar Agrawal