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" Bagwan Nahi Banna Mujhe Insan Rehne Do"

Updated: Jun 3

By Dr Kanchan Sharma



मां की गोद से उतरकर

धरती पे पैर धरा

खिलोनो से दोस्ती की,लगाइ ना देर ज़रा

कानो में छोटी सी बाली,नाक में मोती जड़ा

पैरो में पहनी पायल,मन चाव से भरा

किताबें संभाली, बस्ते को उठाया

साथ साथ घर को भी सजाया

कुछ कर गुजरने का सपना आंखों में समाया

वो सबकी उम्मीदों पे खरी हो गई

आज वो थोड़ी सी बड़ी हो गई


बाहर की दुनिया अब करीब थी

हर कूचा नया हर गली नवीन थी

सुंदर नगरी बड़ा सुंदर ज़माना

अपनी मंजिल को था मुट्ठी में समाना

पर ये आंखे...

कुछ बहुत भली, कुछ नज़रें अजीब थी

कुछ थी नियामत, कुछ बिलकुल फरेब थी

क्यों है, क्या है.....

अभी तो था, नीयतों को समझना

कि नसीहत मिली....

इतना मत इतराया कर

सर ढक के बहार जाया कर

भाई को साथ ले जाया कर

मानो बंद, बाहर वाले दरवाज़े की कड़ी हो गई

आज वो फिर थोड़ी सी बड़ी हो गई


फिर एक दिन पूजा गया,कहा तू देवी रूप है

वो दुविधा में थी...

वो शक्ति है जो सब कर सकती है

यां वो शक्ति है जो सब सह सकती है

सब सहा भी, सब किया भी

न खुद के लिए कभी जिया भी

उसकी शक्ति थी दुसरो की हंसी

सबकी खुशी में थी उसकी खुशी

पर वो हैरान थी.....

क्यों सब ने मुह फेर लिया

जिस दिन वो खुद के लिए खड़ी हो गई

आज वो फिर थोड़ी सी बड़ी हो गई



मां बनी तब भी रब का रूप थी

ममता की ठंडी छांव बनी

भीतर कितनी भी धूप थी

खुद के भावों को त्याग दिया,

बच्चों के भावों का साथ दिया

आहत हुई जिस दिन उसके हाथ से

बच्चों का भी हाथ गया

वो समझी नहीं क्या कमाल हुआ

कब कहां उसका इस्तेमाल हुआ

उसकी मुस्कान आंसुओ की झड़ी हो गई

आज वो फिर थोड़ी सी बड़ी हो गई


हां अब उसके आत्मनिर्भर बनाने की सुनवाई है

ये आज़ादी उसने तिहरी जिम्मेदारी के साथ कामई है

मा-बाप, बच्चे और घर को भी सजाना है

तब आत्मनिर्भर बनने घर से बाहर जाना है

चारो तरफ को संभालते उसका मन तिलमिलाया है

देह का मास, हड़िया और दिल का सुकून गवाया है

वो कुंठित है कि क्यों झगड़ना पड़ता है

अपने हक के लिए अपनो से ही लड़ना पड़ता है

क्यों उसकी अपनी ही दुनिया से अड़ी हो गई

आज वो फिर थोड़ी सी बड़ी हो गई


एक अर्ज़ उसके अपनो से

इतना न इतरायो तुम

बस उसके हर काम में थोड़ा सा हाथ बटाओ तुम

जैसे उसने हर जिम्मेदारी को बांटा है

उसका दुख दर्द बटाओ तुम

जैसे खुद का मान प्यारा है

उसका भी सम्मान बढ़ाओ तुम

एक मौज है वो, दरिया के साथ बहने दो

भगवान नहीं बनना उसे, बस इंसान रहने दो


By Dr Kanchan Sharma




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